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बसवनपुरके लेख
कं यास्यस्यमिमान रत्न निलयं चन्द्रप्रभायै विना ॥ साहित्योतपादपं चितितले दुष्कर्मणा पातितं । वाग्देवी - पृथु-वक्ष- मण्डनमहो सन्धि निर्नासितं । सर्व्वशागम-सार-भूधरमिंदं द्वषेण निर्लोठितं । श्रीचन्द्रप्रभदेव-देव-मरणे शास्त्रार्णवं शोषितम् ||
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नमोऽस्तु
[ इस लेख में द्रमिल-संघगत नन्दि- संघके अरुङ्गल - अन्वय की समन्तभद्र -मुनीश्वरसे लेकर चन्द्रप्रभ- मुनिनाथ तककी पट्टावली या शिष्य परम्परा दी हुई है। वह क्रमसे इस प्रकार है :
१. समन्तभद्र मुनीश्वर - वारणासी ( वाराणसी = बनारस) में राजाके सामने विपक्षियोंको हराया ।
२. कुमार सेन - दक्षिण में आकरके उनकी मृत्यु हुई, परन्तु मृत्यु के बाद भी उनकी कीर्त्ति सारे भारतमें सूर्यकी तरह प्रकाशित हो रही थी ।
३. गुरु चिन्तामणि - चिन्तामणि काव्यकी रचना की थी। बिनभक्तों के लिये वास्तवमें ही 'चिन्तामणि' थे ।
४. चूडामणि - चूड़ामणि काव्यकी रचना की थी, जिसमें काव्यगत अक्षङ्कारोंका वर्णन था । वे वास्तवमें विद्वच्चूड़ामणि थे ।
५. मुनीश्वर महेश्वर — इन्होंने महान् सत्तर ७० शास्त्रार्थों में विजय पायी थी । उनके पैर ब्रह्म- राक्षस भी पूजते थे ।
६. शान्तिदेव मुनीश्वर - दिशाओंके अन्ततः तपसे समुद्भूत उनकी कीर्त्ति फैली हुई थी । वे बहुत शान्तमूर्ति थे ।
७. अकलङ्कदेव – उनकी कीलिका वर्णन कौन कर सकता है । इनके प्रबल विजयी शास्त्रार्थों से बौद्ध पण्डितोंको मृत्युतकका आलिङ्गन कराया गया था । ८. • पुष्पसेन मुनि - यह अकलङ्गदेवके साथी ( सघर्म्मा ) थे ।
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