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हलेबीडके लेख
२११ रवन्दु श्रीमन्महा-बहु-व्यवहारि कवरमयन देवि सेष्ट्रियरु माडिसिद श्रीशान्तिनाथ-देवर बसदियूर-कोरबुरेय कालुहल्लि माचियहल्लिय पमतिगट्टष इटगेय मल्लरसय्यंगण मक अप्पय्य-गोपय्य-बाचय्यङ्गळु आ-शान्तिनाथ-देवर बसदिय परिसूत्रदोळगण तम्म माडिसिद पट्टशालेय श्री-मल्लिनाय "वरष्ट-विधा
चनेगं खण्ड-स्फुटित-जीणोद्धारक ऋषियकळाहार-दानक्क पर्चदिनपूजेगं भीमन्महामण्डलाचार्याण्डविय बाळचन्द्र-सिद्धान्तदेवर शिष्यर् रामचन्द्र-देव अरुवत्तु-गद्याण होन्नं क्रयवागि कोट्ट कोण्डरा-बम्मतिगद सीमा सम्बन्धवेन्तेने (आगेकी ३ पंक्तियोंमें सीमाकी चर्चा है ) आ-केरेयनिप्पत्त-होनं को कट्टिसिदर् देवर नित्य-पूना-क्रममेन्तेने ॥ (आगेको ६ पंक्तियोंमें दानकी चर्चा है ) इत्ति नितुमं सर्व-बाधा-परिहारवागि श्री-शान्तिनाथ-देवर वसदिय-आचार्यरारोरिहरिद्दवरुं कोरडुकेरेय गौडुगळु ऊररुवत्तोक्कलु अरुवण्णवोळगाद अन्यायवेनु बदडं तावे तेत्तु सलिसुबरु ई-धर्मवं नरवरंगळारैय्दु प्रतिपाळिसुवरु ॥ (हमेशाका अन्तिम श्लोक ) मंगल महा श्री॥
[इस लेखमें सबसे पहले मुनि बालचन्द्रकी प्रशंसा है। वे मूलसंघ, देशियगण और वक्र-गच्छके थे। जिस समय यादव-नारायण वीर-बल्लालदेव शान्ति और बुद्धिमत्तासे राज्य कर रहे थे:-( उक्त मितिको ) बहुत पुराने व्यापारी कवडमय्य और देवि-सेटिने शान्तिनाथ-देवकी बसदिके लिए कोरडुकरेके एक छोटे गांव माचियहल्लिके बम्मटिगट्टको बनाया और इटगे मल्लरसय्यके पुत्र अप्पय, गोपय्य और बाचय्यने, शान्तिनाथ-बसदिके घेरेके अन्दर अपने द्वारा बनाये गये पटशाले के मलिनाथ-देवकी अष्टविध पूजाके लिये, महामण्डलाचार्य माण्डवि बालचन्द्रसिद्धान्त-देवके शिष्य रामचन्द्रदेवको ५० होन्नु देकर उस बम्मटिगट्ट ( उसकी सीमायें) खरीदकर भेंट कर दिया, और २० होन्नु देकरके एक तालाब बनवा दिया। इस दानकी रक्षा शान्तिनाथ बसदिके आचार्य, कोखकरेके किसान, और गांवके ६० कुटुम्ब करेंगे।]
[EC, V, Belur, tl., No. 120]