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जैन-शिलालेख संग्रह और पुष्पदन्त-स्वामी, एसन्धि सुमति-भट्टारक, समन्तमंद स्वामी, भट्टाकलंक-देव
मीवाचार्य, वनन्दि-भट्टारक, सिंहनंद्याचार्य, परवादि-मल्ल भीपाल-देव, कमकसेन भी वादिराज, श्री-विनय-देव, श्री-बादिराज-देव, अजितसेन-पण्डित-देव,
और मल्लिषेण-मलधारि-स्वामिः तदनन्तर श्रीपाल-योगीन्द्र हुए (इनकी प्रशंसा)। इनके मुख्य शिष्य बासुपूज्य-बतीन्द्र हुए ( इनकी प्रशंसा )।
इनके गृहस्थ-शिप्य, रत्नत्रयके समान, ब 'देव, उसकी पत्नी सावियक, और इनका पुत्र ( प्रशंसा पूर्वक ) वेल्लिमें दासि-सेटि थे। इसकी पत्नी बोकियक थी . इन दोनोंकी बहिनके लड़के हेगड़े मादिरान तथा संकर-सेटि थे। ___ बन्दवुरमें मादिराज और संक-सेटिने पार्श्व-देवके लिये एक मन्दिरका निर्माण कराया, और पुष्पसेन-देवने पार्श्व-देवकी मूर्ति बनवावी । उन देवकी अष्टविध पूजनके लिये, मुनियोको आहार देनेके लिये, तथा मन्दिरकी मरम्मत के लिये,वासुपूज्य सिद्धन्ति-देव, उनके शिष्य पुष्पसेन देव, मादिराज, संकर-सेट्टि, तर. सभी प्रषा और किसानोंने ( उक्त मिति को) ग्रहण के समय, ३३ बिलस्तके एक डण्डेसे नापकर भूमि-टान किया ( भूमिका वर्णन)। 'मुङ्क' (या चुङ्गी )के हेगडेने हमेशा जलनेके लिये एक हाथकी तेलकी चक्की दी।
इस तरह यह सब वासुपूज्य-सिद्धान्त-देवने अपने शिप्य वृषभनाथ-पण्डितको सौंप दिया । हमेशाकी तरह अन्तिम श्लोक । पुष्पसेन-मुनिकी प्रशंसा । ] [ EC. V, Arsikere Tl., No. 1. ]
३७४ बिजोली;-संसहत । [सं० १९९९% ११.० ई.] लेख श्वेताम्बर सम्प्रदाय का मालूम होता है। [JASB, LV,p.21-32, Trp. 40-48, 0.]