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जैन-शिलालेख-संग्रह
पिसने हिमालयसे लगाकर सेतु तक और सेतुसे लगाकर हिमालय तक तमाम शत्रु राजाओं को नष्ट कर दिया। विस समय धारावतीपुरवराधीश्वर, मलेय-चक्रवर्ती विष्णुवर्द्धन होय्सल देव शान्ति से अपने राज्य का शासन कर रहे ये:उनके चरण-कमलसे आजीविका करनेवाला, (अन्य-अन्य विशेषणों के साथ) अजितसेन भट्टारक का शिष्य महाप्रभु पेाडि हुआ। उसकी सन्तति निम्नलिखित थी:
( अनेक प्रशंसाओं के बाद ) पेाडि का ज्येष्ठ पुत्र भीमष्य था, उसकी पत्नी का नाम देवलब्बे था। उनके पुत्र मसणि-सेटि और मारि-सेट्टि थे। दोरसमुद्र के मध्यमें मारमने एक बहुत ऊंचा जिनालय बनवाया । उसका पुत्र गोविन्द था । उसने मुगुली में एक वसदि बनवायी, जिसके लिए भीमय्य और उसकी पुत्री नागियकने पूजा का सामान दिया। उसके दो पुत्र थे,-बिष्टि-सेट्टि और नाकिसेटि।
उसके गुरु बासुपूज्य की परम्परा समन्तभद्र स्वामी से लेकर कनकसेन, वादिरान, धनपाल,.... कसेन, कलधारि,... 'वासुपूज्य.... और श्रीपाल से होकर आई थी। उनके पैरों का प्रक्षालन करके मुगुलि अग्रहार में नारसिंहहोस्खल देव ने गोविन्द जिनालय के लिये उक्त भूमिका दान दिया।]
[ Ec, V, Hassn U., no 130.]
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बस्ति;-कबड़-मग्न ।
[वर्ष प्रभव या पार्थिव (१)] बस्ति (चिनारळी प्रदेश ) में, जिन्नेदेवर बस्तिके सामने के मानस्तम्भ पर]
स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल तळकाडु-गोण्ड कोङ्ग-नङ्गलि-गङ्गनाडिनोणम्बवाहि-जनवासि-हानुङ्गलु-गोण्ड भुग-बल वीर-गज प्रताप-चक्रवर्तिः श्री