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१७. -पौत्रकम् । अपि च ॥ सवत्सां कपिलां शस्त्रया हत्वास्या ३८. मांस-शोणिते । गङ्गायां सोऽत्ति यो गृण्हात्यमुं धर्मोव्वरां ३६. नरः ।। तत्पातकफलेनासौ यावच्चन्द्रदिवाकरं । तावद्धोरतरं दुःख४०. मश्नुते नरकावनौ ॥ अन्यच्च ॥@॥ मातुस्सा-कपालेन सोऽत्ति मा४१. तम-वेश्ङ्ग[1] श्व-मांसं भिक्षया लब्धं गये (१) यो धर्मभहरः॥@n ४२. भद्रमस्तु जिनशासनाय ॥ सम्पद्यतां प्रतिविधानहेतवे । अन्य४३. वादि-मदहस्ति-मस्तक-स्फाटनाय घटने पटीयसे |@|अक्कसाले४४. सम्योजन पुत्र । अमिनन्ददेवर गुड्ड गोव्योजन खडरणे ॥@@@॥
सारांश यह शिलालेख एक पत्थर पर उत्कीर्ण है। यह पत्थर बामणी गांवके जैनमन्दिरके दरवाजे पर अवस्थित है। बामणी गाँव कामल शहरसे दक्षिणपश्चिम ५ मील पर है । कामल कोल्हापुर रियासतका एक मुख्य शहर है।
इस शिलालेखमें शीलहार वंशके महामण्डलेश्वर विजयदित्यदेव के एक दूसरे दानका उल्लेख है। २-१० की पंक्तियों में दाताकी वही वंशावली और वर्णन है जो नं० ३२० के कोल्हापुरके शिलालेखमें है, सिर्फ इसमें दूरके अपने ६ सम्बन्धियों ( कोर्तिराज, चन्द्रादित्य, गूवल द्वितीय, गङ्गदेव, बल्लालदेव और भोचदेव ) तथा नौ अपने कम महत्त्वके विरुदों ( पदों) को छोड़ दिया है । पंक्ति ११-३४ में उल्लेख है कि अपने निवासस्थान बळवाइ में रहकर ही शासन करनेवाले विजयादित्य देव ने अपने मामा सामन्त लक्ष्मणके कहनेसे तथा अपने गोत्रदान के लिये, जब कि प्रमोद वर्ष चालू था, अर्थात् १०७३ शक वर्षके व्यतीत होने पर, भाद्रपद महोनेकी पूर्णिमा तिथिके शुक्रवारको चन्द्रग्रहणके निमित्तसे-एक भूमिका दान किया। यह भूमि कुण्डिके नापसे नापमें चौथाई निवर्तन थो। साथमें तोस स्तम्भ ( खम्भे) प्रमाण पुष्पवाटिका, १२ हाथका एक मकान भी थे। यह सब भूमि वगैरः "ण [क] गेगोल चिलेके मडलुर गाँवकी थी। इस दानका प्रयोजन यह था कि