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जैन - शिलालेख - संग्रह
श्रवणबेलगोलके एक शिलालेखसे हम जानते हैं कि माघचन्द्र - त्रैविद्यका स्वर्गारोहण बृहस्पतिवार, २ दिसम्बर १११५ ई० को हुआ था; और श्री पाठकके द्वारा प्रकाशित एक सूचना के अनुसार, वीरनन्दीने अपने 'आचारसार' ग्रंथकी समाप्ति उस तिथिको की है जिसे एफ़ कीलहॉर्नने यूरोपियन कलैण्डर के अनुसार सोमवार, २५ मई ११५३ ई० नियत की है। उपर्युक्त लेखके कथनानुसार इस लेखके पूर्वभाग ( पंक्ति १-५६ ) की जब नकल की गई थी और जब यह शिलालेख उत्कीर्ण किया गया था वह काल, उक्त दोनों मुनियोंके काल निर्णयके प्रकाश में, करीब-करीब १२ वीं शताब्दिका मध्य ठहरता है ।
[EI, VI, no 4 ( II part; line 59-72).] T L Tr.
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लण्डन (हॉर्बिमन म्यूज़ियम ) संस्कृतं ।
सं० १२०८ = ११२ ई०
[ जिन मिस्टर हॉर्निमन ( Mr. Horniman ) के म्यूज़ियम में यह मूर्ति-लेख मिला है उसकी मूर्ति उन्होंने म्यूज़ियम के क्यूरेटर ( Curator ) मि० क्विक ( Mr. Quick ) के कथनानुसार, सन् १८६५ में लण्डन में खरीदी थी :--Rh. D.]
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मूर्ति जैनोंके बयालीसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ की है । चरण-पाषाणपर बहुत ही सुरक्षित तीन पंक्तियोंका एक लेख है । लेख नागरी अक्षरों और व्याकरण की अशुद्धियों से भरी हुई संस्कृत में है । लेख और अनुवाद निम्न है --
१. देखो Ind. Art, Vol. XIV. p. 14. श्री पाठकने जो मिति दी है वह यह है 'झक १०७६, श्रीमुख संवत्सर, सोमवार, द्वितीय ज्येष्ठ सुदी प्रतिपद ।'