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जैन-शिलालेख संग्रह
पर कब्जा करने वाले भुजबल-वीर-गत विणुवर्द्धन नारसिंघ - देव, शान्ति से राज्य करते हुए, दोरसमुद्र के निवासस्थल पर थे:
तत्पादपद्मोपजीवी मान्यरवेडपुरवराधीश्वर, अदल लोगोंके लिये सूर्य, मरुगरेनाका अधिपति सामन्त गूळ-बाचि था । उसकी प्रशंसायें, गङ्ग-पुत्रके रूप में उसका वर्णन | उसका पुत्र गुड्डद गङ्ग था । उसके कुलमें नायक बसव हुआ । उसका पुत्र गज था, जिसने गुत्तको हराया था । उसका पुत्र बसवेय था । उसका पुत्र चलवरिव था । उसका पुत्र गङ्ग था, जिसकी स्त्री बेनवाम्बिके थी, और उनका पुत्र मान्यरवेड-पुरका अधीश बाचय या वाचि था उसकी विस्तारपूर्व प्रशंसा ।
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मरु-नाका अधीश, अदल- राम, सामन्त-बाचि मरुगरे - नाड् के कयूदाल . ( कैदाल ) में अतीव उच्च धर्मका पालन कर रहा था । कयूढाळ की शोभा वर्णन । वहाँ उसने नि मन्दिर, शिव मन्दिर और विष्णु मन्दिर सभी को सहारा दिया । और वहाँ उसने यह गङ्गेश्वर मन्दिर, एक नारायण मन्दिर, एक चलवरिवेश्वर मन्दिर, एक रामेश्वर मन्दिर, और जिन मन्दिर बनवाये । तथा उसने भीमसमुद्र और अडळ समुद्र नाम के तालाब बनवाये । तथा दिब्बर ब्राह्मणोंको दिया ।
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इस प्रकार चार मतोंके धर्मको बढ़ाते हुए, सामन्त गूळ- बाचि - देवने, बहुत-से मन्दिर, बसदि और विष्णु मन्दिर, तथा बड़े-बड़े तालाब बनवा कर ( उक्त मितिको ), सूर्य ग्रहण के समय, अपने पिता सामन्त गङ्गेयकी मृत्युके स्मारक में, उनके नामसे एक मन्दिर बनवाकर उसमें गङ्ग श्वर-देवको स्थापना की, और मन्दिरकी मरम्मत, पूजा-विधि, तथा मुनियोंके आहार के लिये ( उक्त ) हिरियकेरेकी ज़मीन दी ।
इस तरह केशव देव, चलवरिवेश्वर-देव, रामेश्वर देवके लिये भी भूमियाँ प्रदान कीं । तथा अपनी पत्नी भीमले के नामपर - बिसका देव बिनपति था, , पिता याबरे- - नाक और माता चिम्बले थौं, भीम बिनालय नामकी बसदि बन
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