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नं. १८२ में अमोघवर्ष के उल्लेख के बाद गंगनरेश शिवमार सैगोट्ट का नाम दिया गया है जिससे मालुम होता है कि यह अमोघवर्ष प्रथम (सन् ८१४-८७७ ई.) के समय का है। पर लेख में गलत रूप से शक सं० २६१ किया गया है और किसी कञ्चरल सैगोट गग का उल्लेख है जिससे लेख जाली मालुम होता है । फ्लोट महोदय इसके उत्तरार्ध भाग को सच्चा मानते हैं।
कृष्ण तृतीय ( अकालवर्ष ) के पौत्र इन्द्र चतुर्थ के सम्बन्ध में ले० नं०१६३ (सन् ६८२ ) से ज्ञात होता है कि वह पोलो के खेल में बड़ा निपुण था । उसने श्रवणवेलगोल में सल्लेखनापूर्वक मरण किया था। इस लेख में इन्द्र के अनेक विशे-ण दिये गये हैं और कहा गया है कि वह गंग गंगेय ( बुतुग द्वितीय) का कन्यापुत्र एवं राजचूडामणि का दामाद था। ले० नं० १५२' से ज्ञात होता है कि राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय के लिए गंग नरेश मारसिंह तृतीय ने गुर्जरप्रदेश को जीता था एवं और कृष्ण तृतीय के पौत्र इन्द्र चतुर्थ का राज्याभिषेक किया था। इन लेखों से ज्ञात होता है कि उस काल में इन दोनों राजवंशों में घनिष्टता थी।
६. कलचुरि वंशः-ले० नं. ४०८ से हमें ज्ञात होता है कि चालुक्य नमडि तेल (तैल तृतीय) के बाद चालुक्य राज्य को लक्ष्मी कलचूरितिलक विजल के हाथ चली आई। कलचूरि वंश बहुत प्राचीन है इसका उल्लेख हम एहोले के लेख (१०८) में पाते हैं जहाँ चालुक्य मंगलीश द्वारा उनके परास्त होने का उल्लेख है। कलचूरि वंश के अन्य लेखों से तथा इस संग्रह के लेख नं. ४०८, ४३५ से ज्ञात होता है कि ये अपनी उत्पत्ति उत्तर भारत के कालञ्जर नामक स्थान से मानते थे। लेख नं. ४०८ में बिज्जल की शूर वीरता का वर्णन है। उसका भाई मैनुगिदेव था । लेख से बिज्जल के तीन पुत्रों-सोयिदेव (रायमुरारि ), शंकम (निःशंकमल), श्राइवमल्ल (रायनारायण) और पौत्र मन्दार का नाम एवं परिचय मिलता है। उक्त लेख में लिखा है कि राजा पिल को सप्ताङ्ग सम्पत्ति दिलाने वाला उसका एक जैन सेनापति रेचि था जो
१. जैन शिलालेख, सं० भाग १, ले० नं० ३८ ।