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कसलमेरीके लेख
[ उसी पाषाणके बायीं ओर-] स्वस्ति कल्कणि-नाड एक्कोटि-जिनालय वेन्दु समे...रू कूटि कोट्ट हेसरु ।। स्वस्ति स्वारि-माचोज कलुकणिनाड आचार्य कलियुग-विश्वकर्मा
[जिनशासनकी प्रशंसा । जिस समय (अपनी हमेशाकी उपाधियों सहित ), भुवबल वीर-गङ्ग-होयसळ. विष्णवर्द्धन-देवका विजयी राज्य अपनी वृद्धि पर था:-तत्पादपद्मीपञ्चीवी सामन्तसोम था ( उसकी प्रशंसा )। जिससमय वीर-गङ्ग पेाडि चोल राज्य पर आक्रमण करनेके लिये हृदुवनकेरीमें कदुले नदीकै किनारे-किनारे जा रहे थे, एक जंगली हाथी भागता हुआ आकर सेना पर टूट पड़ा । अय्कणने उस हाथीको अपने बाणोंसे मार दिया, जिसपर कलुकणि-नाड्के शासकने उसे 'करिय-अय्कण' की उपाधि दी। करिय-अय्कणका सबसे बड़ा पुत्र नाग था, उसका ज्येष्ठ पुत्र सुग्ग-गऊण्ड था, उसका पुत्र सामन्त-सोम था। उसकी मारय्वे और माचले नामकी पलिया थीं। मारय्वे की बहुत-सी पुत्री हुई, पर माचले के पुत्र हुए, जिनमें ज्येष्ठ चट्टदेव और कलि-देव थे। कलुकणि-नाडके शासक, सामन्त-सोवेय-नायक ने (अपनी बहुत-सी उपाधियों सहित ), जो कि धार्मिक जैन और भानुकीर्ति-सिद्धान्तदेवके गृहस्थ-शिष्य थे, हेबिदिसाडिमें एक ऊँचा चैत्यालय बनवाया और उसमें पाव-जिनकी स्थापना करके पूजा-सेवाके खर्चके लिये, मन्दिर की मरम्मत तथा आहारदानके लिये, श्री मूलसंघ तथा सूरस्ट (स्थ) गणके ब्रह्मदेवके पादों को प्रक्षालनपूर्वक 'अरुहनहल्लि' नामक गांव टानमें दिया । चिनालयका नाम 'कल्क ( कलुक ) णि का एकोटि बिनालय' रक्खा था। शिल्प का नाम माचोज था। यह कलुकणि-नाड का आचार्य, कलियुग का विश्वकम्मा था।]
(EC, IV, Nagamargala U., no, 94 and 95]