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नियों की तथा हेमसेन ( कनकसेन ) दयापाल, पुष्पसेन, वादिराज, श्रजितसेन श्रादि श्राचार्यों की प्रशंसा की गई है। ले० नं० २२६ में शान्तर राजाओं के दान का उल्लेख है । ले० नं० ३२६ में उल्लेख है कि सन् १९४७ में विक्रम शान्तर की बड़ी बहिन पम्पादेवी ने उर्वीतिलक जिनालय के समान ही शासन देवता की मूर्ति निर्माण करायी थी, तथा उसने उसके भाई और पुत्री ने पञ्चअसदि के उत्तरीय पट्टसाले को बनवाया था । ले० नं० २३८, ४६७, ४६४, ४६७, ५००, ५०३, ५४२, तथा ५६७ समाधिमरण के स्मारक लेख हैं । ले० नं० ६६७ बहुत विशाल है और विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध विद्वान् वादि विद्यानन्द तथा तत्कालीन राजाओं पर उनके प्रभाव का सुन्दर वर्णन करता है ।
बल्लिगाम्बे : के भी जैन तीर्थ होने के अनेक लेख प्रमाण हैं । यहाँ सन् १०४८ में जजाहुति शान्तिनाथ से सम्बद्ध वलगारगण के मेघनन्दि भट्टारक के शिष्य केशवनन्दि ष्टोपवासि भट्टारक की बसदि थी। इस बसदि के लिए उक्त सन् में महामण्डलेश्वर चामुण्डराय ने कुछ भूमि का दान दिया था (१८१ ) । यहाँ सन् १०६८ में जैन सेनापति शान्तिनाथ ने काष्ठ से बनी हुई प्राचीन मल्लिकामोद शान्तिनाथ तीर्थंकर की बसदि को पाषाण की बनवाया था तथा इस मन्दिर के निमित्त वहाँ माघनन्द भट्टारक को कुछ जमीन दान में दी थी ( २०४ ) । इस लेख में तथा इससे पहले के ले० नं० १८१ में उल्लेख है कि यहाँ सभी धर्मों के जिन, विष्णु, ईश्वर श्रादि के मन्दिर थे । ले० नं० २०४ की अन्तिम पंक्तियों से यह भी विदित होता है जगदेकमल्ल ( जयसिंह तृतीय जगदेकमल्ल ) तथा चालुक्य गंग पेर्म्मानडि विक्रमादित्य ने उक्त बसदि को पहले कुछ जमीनें दान में दी थीं। ले० नं० २१७ ( सन् १०७७ ) से मालुम होता है कि यहां के चालुक्य गंग पेम्र्म्मानडि जिनालय को विक्रमादित्य चतुर्थ ने सेन
के प्राचार्य रामसेन को एक गांव दान में दिया या । सन् १९८६ ई० करीब का एक लेख (४२० ) समाधि मरण का स्मारक है । ले० नं० ४५३ और ४५४ ( सन् १२०५ ई० ) में एक जैन बसदि के लिए एक जैन राजा ( सम्भव है रह वंश के राजा) - द्वारा दान का उल्लेख है। इन दोनों लेखों में रहवंश के पिछले