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बादामीके लेख
णासियोळे र-कोटि मुनीन्द्रदं कविले] यं वेदान्धरं कोन्दुदेन्दयशं सा] मि(द) [ दुसारिदपुदी शैलाक्षरं धात्रियो॥] ___ यह लेख बताता है कि किस तरह, जगदेकमाल के राज्यके द्वितीय वर्ष सिद्धतिय संवत्सरमें उसके दो अधीनस्थ दण्डनायक महादेव और पालदेवने रामदेव नामके किसी सरदारकी प्रार्थना करने पर मन्दिरको वार्षिक दानके रूपमें १० गद्याण 'सिद्धाय नामके करकी आयसे दिये। __ चालुक्य वंशावलीमें दो बगदेकमल्ल आते हैं : एक तो जयसिंह द्वितीय जिसका काल, सर डब्ल्यू ईलियट ( Sir W. Elliot ) के मतके अनुसार, शक ४० से ६६२७) है, और दूसरा सोमेखर तृतीय का ज्येष्ठ पुत्र एवं उत्तराधिकारी, जिसकी सिर्फ उपाधि, नाम नहीं, शिलालेखों में आता है और जिसका समय, उसीके अनुसार शक १०६० से १०७२ है । ___ इस प्रकार दोनोंके राज्यके प्रारम्भका अन्तराल १२० (१०६०-६४०) वर्ष आता है। यह काल २ युगके बराबर होता है। इसके संवत्सरका नाम तथा राज्यका वर्ष अभी भी लेखको सन्देहापन्न बनाये रखते हैं। लेकिन ईलियटके मैनुस्क्रिप्ट कलेक्शन ( Elliot Ms. Collection) से जे. एफ, फ्लीटको इस बातका पता चला कि जयसिंह द्वितीयने 'श्रीमत्प्रतापचक्रवर्ति' यह पदवी कभी धारण नहीं की थी, और उधर यह पदवी सोमेश्वर द्वितीयके उत्तराधिकारीकी उपाधियों में हमेशा आती है। अतएव यह लेख द्वितीय जगदेकमलके समयका है,
और इसकी तिथि शक १०६१ (११३६-४० ई०) है, जो कि "सिद्धार्थ संवत्सर था।]
३१३ बुद्रि-संकृत तथा काद। वर्ष कालयुक्त [ ११९९ ई. (लू. राइस)।] [पुनिमें, बन-शायरी मन्दिरके पूर्वकी भोरके पाषाणपर] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।।