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बुद्रिके लेख
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बेरसा-श्री- रामणन्दि-प्रति-पतियेसेट पद्मणन्दि-प्रतीन्द्रम् । वर-शिष्यङ्गग्र-शिष्यं नेगळ दनु मुनिचन्द्राख्य- सिद्धान्त-देवम् ॥ अन्तवर शिष्यनेसेगु ं । भ्रान्तेम् श्री भानुकीर्ति सिद्धान्तेशम् । क (श) त्रु-मद-दर्प-दळनम् । सन्तत-बुध- कळप भुवनेगळ दें घरेयोळ ॥ कनक- जिनालय वेसे दिल् । श्रनुपमनेकल नृपाळ सवणन-विलिहोळ । जन-नुतमेने भानुकीर्त्ती । मुनिगोप्पिरे बिट्ट मत्तरं पन्नेरडम् ॥ नेगळे चाळ क्य-चकि-वर्ष जगदेक-महीश सासिरम् । मिलिरुत्तु - कालयुत - माघ "दा दशमी बृहस्पती । सोगयिसे वार पन्नेरडु-मत्तरना कोडगेय्महादमम् । तगरदे भानुकीर्त्ति मुनीगेकल बिट शशाङ्कनुळि ळनम् ॥ कोटि-पयं कविलेयनेळ - | कोटि- तपोधनर वेद विदरं पन्निर् । कोटि कोटि तीर्थदे । कोटि-महा-दिनदोळळदनिन्तिदनळिदम् || ( हमेशाका अन्तिम श्लोक ) श्री- बन्दणिकेय तीर्थद प्रतिबद्ध ॥ [बिन-शासनकी प्रसंशा । पृथ्वीका शासन करनेवाले क्रमशः ये राजा हुए: --] १ चालुक्य-चक्र श्वर तैलप; २ सत्याश्रय; ३ विक्रमादित्य; ४ अय्यण; ५. जयसिंह ६ त्रैलोक्यमल्ल ७ सोम ८ त्रिभुवनमल्ल ६ भूलोकमल; १० जगदेकमल्ल |
कुन्तल- देश में, बनबसे- नाड्में, जिड्डु लिगेमें उद्धरेके वृक्षों और बगीचोंका वर्णन |
गंग वंश के राजा मारसिंगका वर्णन । राजा एक्कलकी प्रशंसा । अङ्गादि नानादेशों के विद्वान् और कवियोंके लिए वह कर्णके समान दानी था ।
सुम्मियन्चर सिकी प्रशंसा । उसके गुरु माघनन्दि - ब्रतीन्द्र थे, राबा मारसिंग उसका बड़ा भाई था । सुम्नियन्बरसिने यतीशों को आहारदान तथा बढ़िया पञ्चबसदि दी थी । बसदि के लिए सवणविळिमें भूमिदान किया था ।
न ब्रिसिने इस पूँजीमें और भी वृद्धि की । वहाँ जिन मन्दिर नहीं थे