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जैन-शिलालेख-संग्रह वहाँ चिन-मन्दिर बनवाये, और नहाँ बिन-मुनियोंको आमदनीका क्षेत्र नहीं था वहां उसने दान दिये।
चटियन्बरसि कामधेनु और चिन्तामणिके समान थी। उसके पिता राजा मारसिंग थे, ज्येष्ठ माई राजा एकल, पति राजा दशवर्मा था, जिसका एरेयङ्ग ज्येष्ठ पुत्र था, और उसका छोटा भाई राजा केशव था।
शान्तियक्केके परमदेव जिनेन्द्र थे, गुरु ऋषि-गण थे, बोप्य-डण्डेश उसका चाचा, बोधले उसकी मां, कोटि-सेट्टि उसके पिता थे, उसके पति केति-सेट्टिने उद (द) रेकी बसदिका निर्माण कराया।
मूलसंघ, कोण्डकुन्दान्वय, काणूर-गण और तिन्त्रिणोक गच्छमें रामणन्दि-बतिपति-पद्मणंदि-मुनिचन्द्र सिद्धान्त-देव-भानुकीर्ति-सिद्धान्तेश क्रमशः शिष्यपरम्परामें हुए । अन्तिम मुनिको राना एकलने कनक-जिनालयके साथ-साथ चालुक्य-चक्री जगदेव राजाके राज्यमें ( उक्त मितिको ) भूमिदान दिया ]
[Ec, VIII, Sorab TI. No. 233]
रायबाग;-संस्कृत तथा कन्नर ।
[१] ["रायबाग गांवमें नरसिंगशेटिके जैन मन्दिरके पाषाणखण्ड पर ।" ]
यह एक चालुक्य शिलालेख है । इसमें दासिमरसु पेनानायकके दानका वर्णन है । यह दान सिद्धार्थी संवत्सर के आषाढ़ महीनेकी कृष्णपक्षको त्रयोदशी, सोमवारको, जवकि सूर्य दक्षिणायन हो रहा था, किया गया था। यही संवत्सर जगदेकमलदेव राजाके राज्यका दूसरा वर्ष था । यह दान विनवाग के नरसिंगशेटिके जैन मन्दिरके लिये किया गया था। सर डब्ल्यू ईलियटकी सूची में दो चालुक्य राजाओंकी 'जगदेकमन' उपाधि है,-एक वो जयसिंह द्वितीय की, जिसका करीब-करीब काल शक ६४० से शक ६६२ तक दिया हुआ ह,