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तबनिधिः-सोराब तालुके का यह स्थान भी एक जैन तीर्थ था । यहाँ से अनेकों जैन लेख मिले हैं पर यहां केवल ६ हो लेख संगृहात हैं जो कि सब समाधिमरण के स्मारक हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ऐसे स्थानों में समाधिविधि सम्पन्न कराने वाले प्राचार्य होते थे जहां कि श्रावक जन अपने जावन के अन्तिम क्षणों में श्राकर संन्यासविधि से जीवन त्याग करते थे। - मुल्लुरु:-यह स्थान कुर्ग तालुके में है। यहाँ के ११ वीं से १४ वीं शताब्दी तक के ८ लेख संग्रहीत हैं जिनसे विदित होता है कि यहाँ शान्तीश्वर बसदि, पार्श्वनाथ बसदि एवं चन्द्रनाथ बसदि नाम के तीन निालय थे। ले० नं० १७७, १८८, १६१, २०२, २०६ से विदित होता है कि यह स्थान कोङ्गाल्व नरेशों की श्रद्धा एवं विनय का क्षेत्र था। यहां राजेन्द्र चोल काँगाल्व के समय में एक प्रसिद्ध आचार्य गुणसेन पण्डित ये, 'जनके भक्त, उक्त परिवार के सभी लोग थे । उक्त सभी लेख दान या समाधि के स्मारक हैं। ले० नं० ५६० (सन् १३६१ ) से सिद्ध होता है कि यहाँ चौदहवीं शताब्दा के अन्तिम दशकों तक कोङ्गाल्व राज्य का अस्तित्व था, और वे लोग जैन धर्म के बराबर भक थे। इस लेख में चन्द्रनाथ बसदि की पुनः स्थापना का उल्लेख है।
मुगलूर (मुगुलि ):--हसन तालुके का यह स्थान होरसल राज्य में एक समय जैन धर्म का केन्द्र था । प्रस्तुत संग्रह में यहां के चार लेग्व संग्रहात हैं जिन से ज्ञात होता है कि यहाँ १२ वीं शताब्दी में द्रविड़ सघान्तर्गत नन्दिसंघ अरुङ्गलान्वय की गद्दी थी। उस गद्दी के अधिकारी श्रीपाल विद्य के शिष्य वासुपूज्य देव थे। ले० नं० ३२७ से मालुम होता होता है कि यहां होयसल विष्णुवर्धन के राज्य में एल्कोटि जिनालय नामक एक प्रसिद्ध मन्दिर था। यहीं महाप्रभु पेनिडि के पुत्र गोविन्द ने बड़ी बसदि बनवायी थी । उस मन्दिर के भटारक वासुपूज्य देव को उक्त जिनालय के लिए नारसिंह होय्सल देव ने कुछ भूमि का दान दिया था।
कारकल:-तुलु देश में यह महत्त्वपूर्ण जैन केन्द्र है। इस स्थान का इति