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अ. राइस महोदय कोपण को निबाम हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिम में स्थित वर्तमान कोप्पल को माना है । इस विषय में अब सन्देह नहीं है। .
चिकहनसोगे:-जैन तीर्थों में चिक्क हनसोगे का नाम भी प्रमुख था। इस संग्रह के लेखों से प्रतीत होता है कि उक्त स्थान ११ वीं शताब्दी के पहले से भी जैन धर्म का केन्द्र था । ले० नं० २४० से शात होता है कि वहां एक समय ६४ बसदियां थीं जो कि अब सब ध्वस्त हालत में हैं पर उन्हें देखने से मालुम होता है कि वे चालुक्य शिल्प की शैली में सुन्दर ढंग से निर्मित हुई थीं। ले० नं० २२३ ( लगभग सन् १०८० ई० ) से विदित होता है कि दामनन्दि.भट्टारक के अधिकार क्षेत्र में पनसोगे के चङ्गाल्व तीर्थ को सारी बसदियाँ थीं,अम्बेय बसदि तथा तोरेनाड् की बसदि भी उनके प्रधान शिष्यगण के अधिकार में थी । ले० नं. १६६, २४० और २४१ से उन बसदियों का एक विचित्र इतिहास मालुम होता है कि इन बसदियों के श्रादि प्रतिष्ठापक मूलसंघ, देशीगण, होत्तगे गच्छ के रामस्वामी थे जो कि दशरथ के पुत्र, लक्ष्मण के भाई सीता के पति और इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न हुए थे। पीछे इन्हीं बसदियों को दान देने वाले क्रमशः शक, नल, विक्रमादित्य, गंग और चङ्गाल्व थे। सन् १०६० के लगभग यहां चंगाल्व नरेश राजेन्द्र चोल ननि चंगाल्व ने कुछ बसदियों का निर्माण कराया था।
हनसोगे के जेन गुरुओं का बड़ा प्रभाव था। इनकी एक शाखा हनसोगे बलि नाम से प्रसिद्ध थी । सन् १३०३ में हनसोगे के बाहुबलि मलधारि देव के शिष्य पअनन्दि भट्टारक ने होन्नयन हल्लि में गंध कुटो निर्माण करायी थी तया १५ गद्याण का दान भी दिया था (५५१)। पन्द्रहवीं शताब्दी के लगभग कारफल के शासकों को जैन धर्म के प्रभाव में लाने वाले इसी स्थान के गुरु थे। इनसोगे के ललितकीर्ति भुनीन्द्र के उपदेश से शक सं० १३५३ फाल्गुन शुक्ल १२ के दिन सोमवंश के भैरवेन्द्र के पुत्र पाणन्ध राय ने कारकल में बाहुबलि की प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठित करायी थी ( ६२४ )।