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क्या तेला, (सन् ८५.ई. के लगभग से १०२५ ई. के लगभग तक) इस वंश में उत्पन्न हुए। दुर्भाग्य से इन सबके सम्बन्ध में कोई लेख नहीं मिलते।
तेल (प्रथम) के तीन पुत्र थे उनमें वीर शान्तर (द्वितीय) ज्येष्ठ था। वही राज्य का अधिकारी हुश्रा । उसके राज्य के इस संग्रह में दो लेख है। ले. नं. १६७ में उसके अनेक विरुद दिये गये हैं। ले० नं. १९८ से ज्ञात होता है कि उसने समस्त विरोधियों को नष्ट कर अपने राज्य को निष्कण्टक कर दिया था। इस लेख में उसकी पत्नी चागलदेवी द्वारा निर्मापित तोरण एवं मन्दिर आदि कार्यों तथा दानों की प्रशंसा है। वीरशान्तर का अधिराजा त्रैलोक्यमल्ल चालुक्य ( सोमेश्वर प्रथम-सन् १०४२-१०६८ ई.) था इसके नाम पर ही वीर शान्तर का दूसरा नाम त्रैलोक्यमान पड़ा ( १६७, १९८)। ले० नं० २१३ से ज्ञात होता है कि इसका विवाह जिन भक्त कुल गंगवंश में हुआ था। उसका ससुर रकस गंग था। उसकी पत्नी कञ्चलदेवी ( वीर महादेवी ) से उसे चार पुत्र उत्पन्न हुए-तैल, गोग्गिग, श्रोडुग और बर्म। ये सब जैन धर्म के परम भक्त थे। इन भाइयों ने अपनी जैन धर्मपरायणा मौसी चट्टलदेवी के सहयोग से जैन धर्म की प्रभावना के अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये थे। इस संग्रह में तेलशान्तर के राज्यकाल के ७ लेख ( २०३, २१२, २१३, २१४, २१५, २१६, २२६) है जो सभी हुम्मच से प्राप्त हुए हैं। ले० नं० २०३ से ज्ञात होता है कि तैल द्वितीय ने सन् १०६६ में अपनी राजधानी पोम्बुच्चपुर में एक जिनालय बनवाया था, जिसका नाम भुजबल शान्तर जिनालय था। अन्य लेखों में उसके भाइयों के धार्मिक कार्यों का उल्लेख है। तेल द्वितीय भी अपने पिता के समान चालुक्य त्रिभुवन मल्ल ( विक्रमादित्य षष्ठ ) के अधीन था। उसका विरुद मी था त्रिभुवन मल्ल । उसने अपनी माता वीरन्बरसि की स्मृति में, वादिघरट अजित सेन पण्डितदेव का नाम लेकर एक बसदि की नींव रखी थी।
ले.नं. २४८ और ३२६ से शात होता है कि तेल शान्तर के पम्पादेवी नाम की एक पुत्री तथा श्रीवकाम नाम का पुत्र था लथा श्रेहुन्ग शान्तर के तेल