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१२५ शताब्दियों तक रही। ले०० ३६३ (प्रथम माग, १३७ ) में एक प्रसंग में लिखा है कि दिन शासन के स्थिर उद्धार करने में प्रथम कौन है ? तो उत्तर होगा राचमल्ल भूपति के वरमंत्री राय (चामुण्डराय) (पद्य २२)।
३. शान्तिनाथ-इसके सम्बन्ध में ले० नं० २०४ में लिखा है कि वह सहजकवि, चतुरकवि, निस्सहायकवि " नुनमहाकवीन्द्र था । उसकी उपाधि सरस्वती मुखमुखर थी। उसका यश अति विशद था और वह जिन शासन रूपी सत्सरोजिनी का कलहंस था । उसने अपने राजा लदमनृप से प्रार्थना कर बलिनगर में लकड़ी के बने जैन मन्दिर को पाषाण का बनवाया। इस मन्दिर का नाम मल्लिकामोद शान्तिनाथ था ।
१२ वीं शताब्दी में होय्सल वंश से सम्बन्धित हम अनेक जैन सेनापतियों को देखते हैं । इस वंश का प्रतापी नरेश विष्णुवर्धन था। उसकी अनेक विस्तृत विजयों का श्रेय उस नरेश के आठ जैन सेनापतियों को था। ये सेनापति थेगंगराज, बोप, पुणिस, बलदेवएण, मरियाने, भरत, ऐच और विष्णु । इन सेनापतियों के कारण ही होय्सल राज्य दक्षिण भारत की प्रधान शक्तियों में गिना आने लगा।
४. गंगराज-इन सेनापतियों में प्रधान था गंगराज। इसके सम्बन्ध में जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग की भूमिका में पर्याप्त लिखा गया है। इसके जीवन वृत्त को जानने के लिए इस संग्रह में दो दर्जन से अधिक लेख है । प्रस्तुत द्वितीय तृतीय भाग में इस सेनापति से सम्वन्धित केवल ले० नं० २६३, २६६, २६६, ३०१ और ४११ के मूल पाठ हैं । शेष २८५ (४३) २७८ ( ४४ ) २५४ (४६) २५५ (४७) २६० (६५) २८१ (४४६) २८३ (४८९) ३६६ (६० ) के मूल पाठ प्रथम भाग में दिए गये हैं, कोष्ठक में उन लेखों की संख्या दी गई है। प्रथम भाग के ले. नं० ७५, ७६, ४४७ और ४७८ इन भागों के लेखों की संख्या से नहीं पहिचाने जा सके। लेख २६३, २६६ और २६६ में उसकी अनेक सामरिक विजयों का उल्लेख तथा जैन मुनियों और