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गोल प्रथम के सम्बंध में श्रवण बेल्गोल से प्राप्त दो लेखों ( ३४८, ३७८ ) से ज्ञात होता है वह भी जैन था । उसके गुरु नयकीर्ति सिद्धान्त देव ये तथा वह होय्सल विष्णुवर्धन द्वारा पराजित हुआा था ।
७. चेर वंश-चेर वंश की एक शाखा प्रदिर्गेमान् का एक लेख ( ४३४ ) हमारे संग्रह में है, जिससे उस वंश का थोड़ा परिचय मिलता है । उक्त लेख में एलिनि उर्फ यवनिका नामक एक अदिमान् सरदार का उल्लेख है । दूसरा सरदार राजराज था । उसका पुत्र विकादलगिय पेरुमाल अर्थात् ब्यामुक्त श्रवणोज्ज्वल था, जिसे लेख में तकटानाथ कहा गया है । अन्यत्र उल्लेखों से मालुम होता है कि वह सन् १९६८ - १२०० ई० में जीवित था । उक्त लेख के अनुसार व्यामुक्त श्रवणोज्ज्वल ने अपने पूर्वज यवनिका द्वारा तुण्डीर मण्डल के सुगिरि पर प्रतिष्ठापित यक्ष-यक्षिणी की प्रतिमाओं का जीर्णोद्धार कराया तथा एक घण्टा दान में दिया और एक नाली भी बनवायी थी। लेख से ज्ञात होता है कि इस शाखा के तीनों पुरुष जैन धर्म में रुचि रखते थे ।
८. शिलाहार वंश - शिलाहार अपने को जीमूतवाहन का वंशज मानते हैं । प्रस्तुत संग्रह में पश्चात्कालीन शिलाहारों के केवल तीन लेख संगृहीत हैं, जो कि कोल्हापुर और उसके आसपास प्रदेश में राज्य करते थे । ले० नं० ३२० और ३३४ में इस वंश की वंशावली दी गई है जिसमें जतिग से इस वंश का प्रारम्भ माना गया है । जतिग को नरेन्द्र, क्षितीश कहा गया है । जतिग के चार बेटे थे- गोङ्गल, गूबल, कीर्तिराज और चन्द्रादित्य । इसमें गोडल का पुत्र मारसिह हुना जिसके पाँच पुत्र थे: - गूवल, गंगदेव, बल्लाल, भोजदेव, गण्डरादित्य | उक्त दोनों लेख गण्डरादित्य के पुत्र विजयादित्य के राज्य के हैं जो कि भूमिदान संबंधी है । इन लेखों में उसके जो विरुद दिये गये हैं उनसे ज्ञात होता है कि वह अपने समय का बड़ा प्रतापी मण्डलेश्वर था । बल्लालदेव और
२ - जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, ले० नं० १३८, ४२