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विदित होता है कि देवराय का उत्तराधिकारी विजय अर्थात् बुक्क तृतीय या बिसने कुछ ही महीने राज्य किया था। ले.नं०६१८ में विजय बुक्कराय के सम्बंध में लिखा है कि उसने स्वर्ग प्राप्ति के लिए गुम्मटनाथ स्वामी की पूजा एवं सजावट के लिए तोटहल्लि गांव मेंट में दिया था । वह भगवद् अर्हत् परमेश्वर का अाराधक था। उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र देवराय द्वितीय हुश्रा । ले० नं. ६१६ और ६२० में इस वंश की देवराय दितीय तक वंशावली दी गई है। ले० नं०६१६ के अनुसार उक्त ताम्रपत्रों का दाता यही देवराय था । ६२० में इस वंश के प्रत्येक राजा की प्रशंसा में एक एक शार्दूलविक्रीडित छन्द दिया गया है। देवराय द्वितीय की प्रशंसा में अनेक छन्द है और कहा गया है कि उसने अपने पान सुपारी बगीचे में एक चैत्यालय बनवाया था और मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी। इस नरेश ने सन् १४२२ से १४४६ तक राज्य किया । ले० नं०६३५. (सन् १४४६ ई०) में इसको मृत्यु का संवत् दिया गया है।
देवराय द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका बेटा मल्लिकार्जुन हुत्रा पर उसका एक भी लेख प्रस्तुत संग्रह में नहीं है। इसको मृत्यु के बाद सन् १४६५ में उसका भाई विरूपाक्ष तृतीय गद्दी पर बैठा । उसका राज्य सन् १४८५ तक था। उसके समय का एक लेख नं०६४९ (सन् १४७२ ) है जिसमें उसकी अनेक उमाधियां-पृथ्वीमनोवल्लभ, महाराजाधिराज, राजपरमेश्वर आदि-दी गई है । यह संगम वंश का अन्तिम राजा था । इसके मंत्री सालुब नरसिंह ने इसे मार कर राज्य छीन लिया और इस तरह सन् १४८५ में इस वंश का अन्त हो गया। इस वंश के बाद विजयनगर पर शासन करने वाले अन्य वंश भी हुए हैं। उनमें तुलुव
और बारवीडु वंश ख्यात हैं । तुलुव वंश के तृतीय नृप कृष्णदेव राय का नाम इतिहास में विशेष प्रसिद्ध है। अन्य उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इसने
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१. वही-ले० नं० १२५