________________
१०६ नुसार उसके महासांधिविग्रहिक मंत्री बूचिमय्य ने त्रिकूट जिनालय बनवा कर, .उसकी पूजादि के लिए द्रविड संघ के वासुपूज्य सिद्धान्तदेव को मरिकली गाँव भेट किया । इसी तरह लेख नं. ३८१ से विदित होता है कि उसका दण्डाधिप हुल्ल था । यह हुल्ल उसके पितामह विष्णुवर्धन के समय से ही उक्त वंश की सेवा में था। बल्लाल देव ने उस वर्ष भानुकीर्ति व्रतीन्द्र को पाव और चतुर्विशति तीर्थकर की पूजा हेतु मारहल्लि ग्राम दान में दिया तथा हुल्ल के अनुरोध से बेक्क गांव भी भेंट में दिया । ले० नं. ३६६ में लिखा है कि बल्लाल ने अपने पिता द्वारा दिये गये तीन गाँवों के दान को हुल्ल मंत्री द्वारा पूरा कराया ।
इस राजा के इस संगह के अनेक लेख उसके सेनापतियों, मंत्रियों एवं सेठों से संबंधित है जिनका वर्णन पीछे प्रकरणों में दिया गया है। उसकी सामूहिक विजयों के सम्बन्ध में ले० नं० ३६४ में लिखा है कि इसने उच्चंगि के किले को जीता था, तथा ले० नं० ४३१ से विदित होता है कि उसते सेबुण राजा को हराया और ले० नं० ४४८ से ज्ञात होता है कि उसने कुन्तल देश पर कलचूरि बिज्जल के शासन को हटाकर अपने अधीन किया था। ले० नं० ४६५ से मालुम होता है कि इसका एक जैन दण्डनायक रेचि था जो कि ४०८ वें ले० में कलचूरि वंश का दण्डाधिनाथ बतलाया गया है। दोनों लेखों का अध्ययन करने से मालुम होता है कलचूरि नरेश के धर्म परिवर्तन के कारण तथा बल्लाल द्वारा अपने स्वामी के परास्त होने पर संभव है वह उसका सेनापति हो गया हो। ____ बल्लाल द्वितीय के पुत्र नरसिंह द्वितीय के राज्य का केवल एक लेख (४७५)२ हमारे संग्रह में हैं जिसमें उसकी पृथ्वीवल्लभ, महाराजाधिराज, सर्वशचूड़ामणि
आदि उपाधियाँ दी गई हैं। लेख में उक्त नरेश के राज्य में एक सेठ द्वारा गोम्मटेश्वर की पूजा के हेतु किये गए दान का उल्लेख है।
१ वही-ले० नं०६०. २. वही-ले० नं० ८१.