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हमें नरसिंह द्वितीय के पुत्र सोमेश्वर के समय के दो लेख (४५. एवं ४६६) मिलते हैं। ले.नं. ४६५ में सोमेश्वर को विजय एवं कीर्ति का परिचय उनकी उपाधियों से ज्ञात होता है । उक्त नरेश के सेनापति शान्त और उसके पुत्र सातगण ने मनलकेरे में जैनमन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था। द्वितीय लेख में वीर बल्लाल तक तो ठीक रूप से वंशावली दी गई पर पीछे की वंशावली नहीं। लेख में काल निर्देशको देखते हुए कहा जा सकता है कि यह उसके समय का है।
सोमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी उसकी दो रानियों के दो पुत्र, नरसिंह तृतीय एवं रामनाथ हुए । नरसिंह तृतीय के चार लेख प्रस्तुत संग्रह में दिए गये हैं। ले० नं० ४६६ के अन्तर्गत दो लेखों से ज्ञात होता है कि सोमेश के पुत्र नर सिंह ने अपने जीजा द्वारा बनवायी गई चहार दीवारी एवं मकान की मरम्मत कराकर विजयपार्श्वदेव की सेवा में अर्पण किया था तथा कुछ महीने बाद अपने उपनयन संस्कार के समय उक्त देव की पूजादि के निमित्त दान दिया था। ले० नं० ५१२२ में उक्त नरेश द्वारा तथा होनचगेरे के सम्भुदेव द्वारा भूमिदान का उल्लेख है । ले० नं० ५२८३ में होय्यसलराय शब्द से इस नरेश का निर्देश इसके गुरु महामण्डलाचार्य माघनन्दि का उल्लेख तथा वेल्गोल के जौहरियों द्वारा भूमिदान का कथन है । चूँकि लेख का समय उक्त नरेश के राज्यकाल में पड़ता है इसलिए होय्सलराय से नरसिंह तृतीय ही समझना चाहिये ।
अन्यत्र उल्लेखों से ज्ञात होता है कि रामनाथ तथा नरसिंह के उत्तराधिकारी बल्लाल तृतीय ने भी जैन धर्म को संक्षरण प्रदान किया था।
इस तरह हम देखते हैं कि इस वंश के आदि पुरुष से लेकर अन्तिम राजा तक सभी जैन धर्म के प्रति श्रद्धालु, भक्त एवं उसे संरक्षण प्रदान करने वाले थे।
१. वही-ले. नं० ४६६.
२. ,, ले० नं०६६. . ३. , ले० नं० १२६.
४. सालेतोरे, मेडीवल जैनिज्म, पृष्ठ ८५-८६