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वर्मा हुआ जिसके राज्य काल के तीन लेख ( ६७, ६८, ६६) प्रस्तुत संग्रह में हैं। ले० नं० ६७ से ज्ञात होता है कि उसने अपने राज्य के तीसरे वर्ष में अर्हन्तदेव के अभिषेक, उपलेपन एवं पूजनादि के लिए भूमिदान किया था । उसने अपने राज्य के चतुर्थ वर्ष में एक गाँव को तीन भागों में विभाजित कर एक भाग - महाजिनेन्द्र के लिए, दूसरा भाग श्वेताम्बर श्रमण संघ तथा तीसरा भाग दिगम्बर श्रमण के उपभोग के लिए दान में दिया था ( ६८ ) । आठवें वर्ष में उसने पलासिका नामक स्थान में एक जिनालय बनवाकर ३३ निवर्तन प्रमाण भूमि को यापनीयों के लिए तथा निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के कूर्चकों के उपभोग के लिए दान में दे दिया ( ६६ ) । ले० नं० ६६ में उसे एक धर्मविजयी नृप लिखा है । यह लेख राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से महत्व का है। इसमें उसे उन्नत गंग कुल को नष्ट करने वाला तथा पल्लव वंश के लिए प्रलयाग्नि लिखा है । इस लेख से मालुम होता है मृगेशवर्मा पलाशिका से राज्य कर रहा था ।
मृगेश वर्मा के तोन बेटे थे रविवर्मा, भानुवर्मा और शिवरथ । उनमें रविवर्मा उसका उत्तराधिकारी हुआ । उसके राज्यकाल के तीन लेख (१००, १०१, १०२) इस संग्रह में हैं । ले० नं० १०० के अनुसार सेनापति श्रुतकीर्ति के पौत्र जयकीर्ति ने कदम्ब राजाओं द्वारा परम्परा से प्राप्त पुरुखेटक ग्राम को रविवर्मा की श्राज्ञा से अपने माता पिता के कल्याणार्थ यापनीय संघ के कुमारदत्त प्रमुख श्राचार्यों को दान में दे दिया । ले० नं० १०१ राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से महत्त्व का है । इसमें लिखा है कि विष्णुवर्मा प्रभृति राजाओं को नष्ट कर तथा कांचीपति चण्डदण्ड को पराजित कर रविवर्मा पलाशिका में समवस्थित था । इतिहासज्ञ इस लेख के विष्णु को कास्थवर्मा के द्वितीय पुत्र कृष्णवर्मा ( प्रथम ) का इस नाम वाला ज्येष्ठ पुत्र मानते हैं, जिसने सम्भव है, मुख्य शाखा के विरुद्ध विद्रोह खड़ा किया
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१. इस लेख में गंगकुल के जिस नरेश से मतलब है वह पेरूर शाखा का गंग नृपस्य या माधव प्रथम होना चाहिये । पल्लव नृप को सिंहवर्म का पुत्र स्कन्दवर्मा होना चाहिये । ( सक्शेसर श्राफ सातवाहनाज, पृष्ठ २६४ ) ।