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(i) विफलता या पराजय (ii) विरोध और (iii) दबाव
वस्तुतः ये तीनों ही तनाव के कारण हैं। इन तीनों से तनाव उत्पन्न होते हैं और इन तीनों स्थितियों में तनावयुक्त व्यक्ति की मानसिक स्थिति सामान्य नहीं होती है, शायद इसीलिए मनोवैज्ञानिकों ने इन्हें भी तनाव कहा है। (i) विफलता जन्य तनाव - प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का एक लक्ष्य होता है
और उसी को प्राप्त करने के लिए उसके प्रयास होते हैं। किन्तु यह आवश्यक नहीं है, कि उसके सभी प्रयास अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो। जिस व्यक्ति को विफलता मिलती है, वह निराश हो जाता है, दुःखी होता है अर्थात् तनावयुक्त होता है। विरोध जन्य तनाव - आज व्यक्ति या समाज में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में तनाव का एक महत्वपूर्ण कारण पारस्परिक विरोध है। विरोध के कारण उत्पन्न तनाव विरोधजन्य तनाव है। दबाव जन्य तनाव – जब व्यक्ति को किसी कार्य के करने के लिए या क्षमता से अधिक कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है तो यह बाध्यता या दबाव भी तनाव है। यही दबाव बढ़ने पर तनाव का रूप ले लेता है।
यही कारण है कि डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ने क्लेश, दुःख भय इत्यादि भावों को तनाव के समानार्थक कहा है।
(ii)
(iii)
यहाँ हम यह कह सकते है कि जहाँ दुःख है वहां तनाव है। अतः तनाव दुःख रूप है, इसलिए दुःख को तनाव का कारण नहीं कहा है, अपितु उसका समानार्थक कहा गया है।
दुःख क्लेश या भय है तो वह तनाव ही है, क्योंकि जब किसी भी ऐसी घटना के घटित होने पर जिससे व्यक्ति को दुःख क्लेश या भय होता है तो वह
34 समता सौरभ (जुलाई-सितम्बर 1996) डॉ सुरेन्द्र वर्मा पृ.39
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