Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्व
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हैं, तब तक आँख, कान, नाक और जीभ का बल ठीक रहता है" । भारतीय आयुर्वेद के मत में भी मस्तक प्राण और इन्द्रिय का केन्द्र माना गया है। "प्राणाः प्राणभृतां यत्र, तथा सर्वेन्द्रियाणि च ।
यदुत्तमाङ्गमङ्गानां,
शिरस्तदभिधीयते ॥ [ चरक ]
मस्तिष्क चैतन्य सहायक धमनियों का जाल है। इसलिए मस्तिष्क की अमुक शिरा काट देने से अमुक प्रकार की अनुभूति न हो, इससे यह फलित नहीं होता कि चेतना मस्तिष्क की उपज है 1
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कृत्रिम मस्तिष्क चेतन नहीं है
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कृत्रिम मस्तिष्क, जिनका बड़े गणित के लिए उपयोग होता है, चेतनायुक्त नहीं है । वे चेतना - प्रेरित कार्यकारी यन्त्र हैं। उनकी मानव मस्तिष्क से तुलना नहीं की जा सकती । वास्तव में ये मानव मस्तिष्क की भाँति सक्रिय और बुद्धियुक्त नहीं होते । ये केवल शीघ्र और तेजी से काम करनेवाले होते हैं। यह मानव मस्तिष्क की सुषुम्ना और मस्तिष्क स्थित श्वेत मज्जा के मोटे काम ही कर सकता है और इस अर्थ में यह मानव मस्तिष्क का एक शतांश भी नहीं । मानव मस्तिष्क चार भागों में बंटा हुआ है
१ - दीर्घ मस्तिष्क - जो संवेदना, विचार-शक्ति और स्मरण शक्ति इत्यादि को प्रेरणा देता है ।
२ - लघु- मस्तिष्क ।
३ सेत ।
४ - सुषुम्ना ।
यान्त्रिक मस्तिष्क केवल सुषुम्ना के ही कार्यों को कर सकता है, जो मानव मस्तिष्क का क्षुद्रतम अंश है।
यांत्रिक-मस्तिष्क का गणन यंत्र लगभग मोटर में लगे मीटर की तरह होता है, जिसमें मोटर के चलने की दुरी मीलों में अंकित होती चलती है। इस गणन यंत्र का कार्य एक और शून्य अंक को जोड़ना अथवा एकत्र करना है। यदि गणन यंत्र से इन अंकों को निकाला जाता है तो इससे घटाने की क्रिया होती है और जोड़-घटाव की दो क्रियाओं पर ही सारा गणित आधारित है।