Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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सम्यक्-चारित्र
अहीणपंचिंदियत्तं पि से लहे उत्तम धम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्यिनिसेवए जणे समय गोयम मायमायए ॥
-उत्त० १०-१८ सुई च लद्धं सद्धं च वीरियंपुण दुल्लहं। वहवे रोयमाणावि नो 'य णं पडिवज्जए. ॥ माणु सत्तंमि पायाश्रो जो धम्मं सोच सद्द है। तवस्मी वीरयं लद्धं संबुडे निझुणे रयं ।।
-उत्त० ३३१०-११ (१) उत्क्रान्ति-क्रम :
आध्यात्मिक उत्क्रान्ति श्रात्म-शान से शुरू होकर आत्म-मुक्ति (निर्वाण) में परिसमान होती है। उसका क्रम इस प्रकार है
(१) श्रवण (२) जीव-अजीव का ज्ञान (३) गति-ज्ञान ( संसार-भ्रमण का ज्ञान ) (४) बन्ध और बन्ध मुक्ति का ज्ञान (५) भोग-निर्वेद (६) संयोग-त्याग (७) अनगारित्व ( साधुपन) (८) उत्कृष्ट संवर-धर्म स्पर्श (लगने वाले कर्मों का निरोध) (६) कर्म-रज-धूनन (अबोधिवश पहले किये हुए कर्मों का निर्जरण) (१०) केवल-शान, केवल-दर्शन ( सर्वशता) (११) लोक-अलोक-शान (१२) शैलेशी प्रतिपत्ति ( अयोग-दशा, पूर्ण निरोधात्मक समाधि ) (१३) सम्पूर्ण-कर्म-क्षय (१४) सिद्धि