Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
दही बनता है, दूध मिटता है, गोरख स्थिर रहता है। उत्पाद और विनाश के पौर्वापर्य में भी जो अपूर्वापर है, परिवर्तन में भी जो अपरिवर्तित है, इमे कौन स्वीकार करेगा ।
एकेनाकर्षन्ती
श्लथयन्ती
वस्तुतत्त्वमितरेण ।
अन्तेन जयति जैनी नीतिर्मन्थाननेत्रमिव गोपी ॥
एक प्रधान होता है, दूसरा गौण हो जाता है—यह जैनदर्शन का नय है ।
इस सापेक्ष नीति से सत्य उपलब्ध होता है। नवनीत तब मिलता है, जब एक हाथ आगे बढ़ता है और दूसरा हाथ पिछे सरक जाता है।