Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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न क्शन के मौलिक तत्व
नय : सापेक्ष-दृष्टियाँ १ नैगम-नय
अर्मेद और भेद सापेक्ष है। .. केवल अमेद ही नहीं है, केवल मेद ही नहीं है
अभेद और भेद सर्वथा स्वतन्त्र ही नहीं हैं।
यह विश्व अखण्डता से किसी भी रूप में नहीं जुड़ा हुआ खण्ड और खण्ड से विहीन अखण्ड नहीं है। यह विश्व यदि अखण्ड ही होता, तो व्यवहार नहीं होता, उपयोगिता नहीं होती, प्रयोजन नहीं होता। अगर विश्व खण्डात्मक ही होता तो ऐक्य नहीं होती। अस्तित्व की दृष्टि से यह विश्व अखण्ड भी है, प्रयोजन की दृष्टि से यह विश्व खण्ड भी है। र संग्रह-नय
मेद-सापेक्ष अभेद प्रधान दृष्टिकोण ।
वह यह, यह वह, सब एक है, विश्व एक है, अभिन्न है। ३ व्यवहार मय
वह यह, यह वह, सब भिन्न है, विश्व अनेक रूप है, भिन्न है। ४ ऋजु-सूत्र-नय- . .
भूत-भविष्य-सापेक्ष वर्तमान-दृष्टि।
जो बीत चुका है, वह अकिञ्चितकर है। ....जो नहीं आया, वह भी अकिञ्चितकर है।
कार्यकर वह है, जो वर्तमान है। ५ शब्द-नय• भूत, भविष्य और वर्तमान के शब्द भी भिन्न-भिन्न है और उनके अर्थ.
भी भिन्न-भिन्न हैं। स्त्री, पुरुष और नपुसंक के बाचक-शब्द भी भिन्न-भिन्न है और उनके
अर्थ मी भिन्न-भिन्न है। ६ सममिरूद-नय...जितने व्युत्पन्न शब्द है उतने ही अर्थ एक रामवी परतुनी को
अभिव्यक नहीं कर सकता।