Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्व को जमीन पर गिरने से पहले हाथ में ले लेता है। हस गति का नाम
'शीष गति' है। १६-कालतो लोए अर्णते, मावतो लोए अणते-भग०२-१ २०-भग-श २१-(क) आकाश स्वप्रतिष्ठ है। तनुवात (सक्ष्म वायु), धनवाट ( मोटी
वायु), घनोदधि और पृथ्वी इनमें क्रमशः आधार-भाषेय सम्बन्ध है। सूक्ष्म जीव अाकाश के आभय में भी रहते हैं। यहाँ कुछ स्थूल जीवों की अपेक्षा उन्हें पृथ्वी के आश्रित कहा गया है। अजीव शरीर जीव के आभित रहता है। उसका निर्माण जीव के द्वारा होता है और वह जीव से लगा हुआ रहता है। संसारी जीवों का आधार कर्म है। कर्म मुक्त जीव संसार में नहीं रहते। अजीय, मन, माषा आदि के पुद्गल, जीव द्वारा महण किए जाते हैं। जीव कर्म के अधीन हैं। इसलिए वे कर्म सग्रहीत हैं।......भग ११६ (ख) गागों ने याशवल्क्य से पूछा-"याशवल्क्य ! यह विश्व जल में
ओत-प्रोत है, परन्तु जल किसमें ओत-प्रोत है?" वायु में गागी ! वायु किसमें श्रोत-प्रोत है? अन्तरिक्ष में, अन्तरिक्ष गन्धर्व-लोक में, गन्धर्व-लोक आविल्स-लोक में, आदित्य-लोक चन्द्र-लोक में, चन्द्र-लोक नक्षत्र-लोक में, नक्षत्र-लोक देव-लोक में, देव-लोक इन्द्र-लोक में, इन्द्र-लोक प्रजापति-लोक में और प्रजापति-लोक ब्रह्म-लोक में ओत-प्रोत है। ब्रह्म-लोक किसमें श्रोत-प्रोत है याज्ञवल्क्य ! यह अति प्रश्न है गागी ! तू यह प्रश्न मत कर अन्यथा तेरा सिर कट कर गिर पड़ेगा।
यह उप० ३६१ । २२-असति सत् प्रतिष्ठितम्-पति भूतं प्रतिष्ठितम् । भूतं भव्य पाहिलं, भयं भूते प्रतिष्ठितम् ।
(अथर्व० १७१९) (क)......असत, अमाष, एल्य में निरस्त समस्तीपषिकनाम-कस रहित