Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
View full book text
________________
जैन दर्शन के मौलिक तपि ११६-हिमा अंकल 110--हिमा अंक ११८-ह.भा.अंक चित्र ११६-भूनानी विद्वान युक्लीड रेखागणित (दिशागणित) का प्रसिद्ध
प्राचार्य हुआ है। युक्लीडीव-रेखागणित का आधार यह है कि विश्व
का बोर-चोर नहीं है, वह अनन्त से अनन्त तक फैला हुआ है। १२०-अनेकान्त वर्ष किरण ५ पृ. ३०८
"जैन भूगोलबाद"-ले० श्री बाबू घासीरामजी जैन s. S.C
प्रोफेसर "भौतिक शास्त्र' १२१-'आज०-वर्ष २, संख्या ११ मार्च १९४७॥
___ 'फिलिपाइन और उसके वासी-ले• . बैंकटरामन · १२२-मंगलिशमेन ता० १६ सितम्बर १९२२ के अंक में लिखता है कि
"वैनगनुई कारखाने के स्वामी मि० वाई द्वारा न्यूजीलैंड में बनाई गई १२ इञ्बी दूरबीन द्वारा मैसर्स टाऊनलेड और हार्ट ने हाल ही में हवेरा में दो चन्द्रमाओं को देखा। जहाँ तक मालूम हुआ यह पहला ही
समय है जब न्यूजीलैंड में दो चन्द्रमा दिखाई दिए। ... १२३-पृथ्वी के गोलाकार होने के संबंध में यह दलील अक्सर दी जाती है कि
कोई प्रादमी पृथ्वी के किसी भी बिन्दु से रवाना हो और सीधा चलता जाए तो वह पृथ्वी की भी परिक्रमा करता हुआ फिर उसी स्थान 'बिन्दु पर पहुँच जाएगा। परन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि पृथ्वी का धरातल नारंगी की तरह गोल अर्थात् वृत्ताकार है। इससे सिर्फ इतना ही साबित होता है कि यह चिपटी न होकर वर्तुलाकार है। अगर पृथ्वी को लौकी की शक का मान लें तो भी यह सम्भव है कि एक निश्चित बिन्दु से यात्रा प्रारम्भ करके सीधा चलता हुआ व्यक्ति फिर निश्चित बिन्दु पर ही लौट आए।
-विश्व मा०-खक भी रमाकान्त-पृष्ठ १६० .१२४ विद्वानों की गवेषणा क्या खोज के परिणाम स्वरूप पृथ्वी का एक
नवीन ही आकार माना गया है वो न पूर्णतया गोल है और न