Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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हम जो सुनते हैं वह बक्ता का मूल शब्द नहीं सुन पाते। वक्ता का शब्द श्रेणियों - प्राकाश-प्रदेश की पंक्तियों में फैलता है। ये श्रेणियां वक्ता के पूर्वपश्चिम, उत्तर-दक्षिण, ऊंचे और नीचे छहों दिशाओं में हैं।
हम शब्द की सम श्रेणी में होते हैं तो मिश्र शब्द सुनते हैं अर्थात् बक्ता द्वारा उच्चारित शब्द द्रव्यों और उनके द्वारा वासित शब्द- द्रव्यों को
सुनते हैं।
यदि हम विश्रेणी ( विदिशा ) में होते हैं तो केवल वासित शब्द ही सुन पाते हैं १०३ | सूक्ष्मता और स्थूलता
परमाणु सूक्ष्म हैं और अचित्त महास्कन्ध स्थूल हैं । इनके मध्यवर्ती सौक्ष्म्य और स्थौल्य श्रापेक्षिक हैं - एक स्थूल वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को सूक्ष्म और एक सूक्ष्म वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को स्थूल कहा जाता है 1
दिगम्बर आचार्य स्थूलता और सूक्ष्मता के आधार पर पुद्गल को छह भागों में विभक्त करते हैं :
:
१ -- बादर - बादर -- पत्थर आदि जो विभक्त होकर स्वयं न जुड़े ।
२ - बादर - प्रवाही पदार्थ जो विभक्त होकर स्वयं मिल जाएं।
३ - सूक्ष्म बादर - धूम आदि जो स्थूल भासित होने पर भी अविभाज्य हैं ।
४ -- बादर सूक्ष्म - रस आदि जो सूक्ष्म होने पर इन्द्रिय गभ्य हैं।
- सूक्ष्म-कर्म वर्गणा श्रादि जो इन्द्रियातीत है ।
६ --- सूक्ष्म - सूक्ष्म -- कर्म-वर्गणा से भी अत्यन्त सूक्ष्म स्कन्ध ।
बन्ध
अवयवों का परस्पर अवयव और श्रवयवी के रूप में परिणमन होता हैउसे बन्ध कहा जाता है। संयोग में केवल अन्तर रहित अवस्थान होता है किन्तु बन्ध में एकत्व होता है ।
बन्ध के दो प्रकार हैं१ --वैखसिक
२- प्रायोगिक
स्वभाव जन्य बन्ध वैससिक कहलाता है ।