Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
View full book text
________________
जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
[२०९
( ३ ) दो अंश अधिक होने का विधान सदृश सदृश की तरह असदृश-.
reer परमाणुओं के लिए भी है १० ।
श्वेताम्बर - ग्रन्थ तत्त्वार्थं भाषानुसारिणी टीका के अनुसार
श्रंश
सदृश
१- जघन्य जघन्य १०७
२- जघन्य ऐकाधिक
- जघन्य द्वयाधिक
४ -- जघन्य त्र्यादि अधिक
५ -- जघन्येतर समजघन्येतर
६ --- जघन्येतर एकाधिक जघन्येतर
७ -- जघन्येतर द्वयाधिक जघन्येतर ८ -- जघन्तेर अधिक जघन्येतर
दिगम्बर-ग्रन्थ
श
सर्वार्थसिद्धि के अनुसार
१ - जघन्य जघन्य
२ -- जघन्य एकाधिक
३ - जघन्य द्वयाधिक
४ - जघन्य व्यादि अधिक
५ - जघन्येतर सम जघन्येतर
नहीं
६ -- जघन्येतर एकाधिक जघन्येतर
७ — जघन्येतर द्वयाधिक जघन्येतर
नहीं
नहीं
नहीं
the the
सदृश
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
विसदृश
नहीं
है
नहीं
विसदृश
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
नहीं
है
- जघन्येतर व्यादि अधिक जघन्येतर नहीं
नहीं
बन्ध काल में अधिक अंश वाले परमाणुहीन अंश वाले परमाणुओं को अपने रूप में परिणत कर लेते हैं। पांच अंश वाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंश वाला स्निग्ध परमाणु पांच अंश वाला हो जाता है। इसी प्रकार पांच अंश वाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंश वाला रूखा परमाणु स्निग्ध हो जाता है । जिस प्रकार स्निग्धत्व हीनांश रूक्षत्व को अपने में मिला लेता है उसी प्रकार रूक्षत्व भी हीनांश स्निग्धत्व अपने में मिला लेत है ।
नहीं
नहीं
है