Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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- जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व २१९ भरत-क्षेत्र में एक साथ ही सूर्य दिखाई देना चाहिए और अमेरिका, एशिया में . जो रात-दिन का अन्तर है वह नहीं होना चाहिए। परन्तु भरत-क्षेत्र के अन्तर्गत
आर्य-क्षेत्र के मध्य की भूमि बहुत ऊँची हो गई है जिससे एक ओर का सूर्य दूसरी ओर दिखाई नहीं देता। वह ऊँचाई की श्राड में आ जाता है।
और इसलिए उधर जाने वाले चन्द्रमा की किरणें वहाँ पर पड़ती हैं। ऐसा होने से एक ही भरत क्षेत्र में रात-दिन का अन्तर पड़ जाता है। इस आर्य-क्षेत्र के मध्य-भाग के ऊँचे होने से ही पृथ्वी गोल जान पड़ती है। उस पर चारों ओर उपसमुद्र का पानी फैला हुआ है और बीच में दीप पड़ गए हैं। इसलिए चाहे जिधर से जाने में भी जहाज नियत स्थान पर पहुंच जाते हैं। सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही लगभग जम्बूद्वीप के किनारे-किनारे मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए घूमते हैं और छह-छह महीने तक उत्तरायण-दक्षिणायन होते रहते हैं। इस आर्य-क्षेत्र की ऊँचाई में भी कोई-कोई मीलों लम्बे-चौड़े स्थान बहुत नीचे रह गए हैं कि जब सूर्य उत्तरायण होता है तभी उन पर प्रकाश पड़ सकता है। तथा वे स्थान ऐसी जगह पर हैं कि जहाँ पर दोनों सूर्यों का प्रकाश पड़ सकता है तथा दक्षिणायन के समय सतत् अन्धकार रहता है।
जैन-दृष्टि के अनुसार पृथ्वी चिपटी है। पृथ्वी के आकार के बारे में विज्ञान का मत अभी स्थिर नहीं है। पृथ्वी को कोई नारंगी की भांति गोलाकार, कोई लौकी के आकार वाली १२३ और कोई पृथिव्याकार मानते हैं १२४॥
विलियम एडगल ने इसे चिपटा माना है। वे कहते हैं-हरएक किन्तु सभी मानते हैं कि पृथ्वी गोल है,१२५ किन्तु रूस की केन्द्रिय-कार्टोग्राफी संख्या के प्रमुख प्रोफेसर 'इसाकोम' ने अपनी राय में जाहिर किया है कि"भू मध्य रेखा एक वृत्त नहीं किन्तु तीन धुरियों की एक 'इलिप्स' है।" __"पृथ्वी चिपटी है इसे प्रमाणित करने के लिए कितनेक मनुष्यों ने वर्ष बिता दिये, किन्तु बहुत थोड़ों ने 'सोमरसेर' के बासी स्वर्गीय 'विलियम एडगल' के जितना साहस दिखाया था। एडगल ने ५० वर्ष तक संलग्न चेष्टा की। उसने रात्रि के समय आकाश की परीक्षा के लिए कभी बिछौने पर न सोकर कुसी पर ही रातें बिताई। उसने अपने बगीचे में एक ऐसा लोहे का नल गाड़ा जो कि ध्रुव तारे की तरफ उन्मुख था और उसके भीतर से देखा जा