Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व . [२२१ चर मानते हैं। यह मत वैध बहुत दिनों तक विवाद का स्थल बना रहा । प्राइस्टीन ने इसका भाग्य पलट दिया।
"क्या पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है या स्थिर है" ! सापेक्षवाद के अनुसार कोई निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता। हम Denton की पुस्तक Relativity से कुछ यहाँ भावार्थ उपस्थित करते हैं:
"सूर्य-मंडल के भिन्न-भिन्न ग्रहों में जो आपेक्षिक गति हैं उसका समाधान पुराने 'अचल पृथ्वी' के आधार पर भी किया जा सकता है और 'कोपर निकस' के उस नए सिद्धान्त के अनुसार जिसमें पृथ्वी को चलती हुई माना जाता है। दोनों ही सिद्धान्त सही हैं और जो कुछ खगोल में हो रहा है उसका ठीक-ठीक विवरण देते हैं। किन्तु पृथ्वी को स्थिर मान लेने पर गणित की दृष्टि से कई कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं। सूर्य और चन्द्रमा की कक्षा से तो अवश्य गोलाकार रहती है, किन्तु सूर्य से अन्य ग्रहों का मार्ग बड़ा जटिल हो जाता है जिसका सरलता से हिसाब नहीं लगाया जा सकता (इस हिसाब को जैनाचार्यों ने बड़ी सुगमता से लगाया है जिसे देखकर जर्मनी के बड़े बड़े विद्वान् Gr. D. C Schubieng प्रभृति शत्-मुख से प्रशंसा करते हैं) किन्तु सूर्य को स्थिर मान लेने पर सब ग्रहों की कक्षा गोलाकार रहती है। जिसकी गणना बड़ी सुगमता से हो सकती है।"
आइन्स्टीन के अनुसार विज्ञान का कोई भी प्रयोग इस विषय के निश्चयात्मक सत्य का पता नहीं लगा सकते १२॥ ___ "सूर्य चलता हो अथवा पृथ्वी चलती हों किसी को भी चलायमान मानने से गणित में कोई त्रुटि नहीं आएगी १३८" सृष्टिवाद ___ सापेक्ष दृष्टि के अनुसार विश्व अनादि-अनन्त और सादि सान्त जो है, द्रव्य की अपेक्षा अनादि अनन्त है, पर्याय की अपेक्षा सादि सान्त । लोक में दो द्रव्य है-चेतन और अचेतन। दोनों अनादि है, शाश्वत हैं। इनका पौर्वापर्य ( अनुक्रम-भानुपूर्वी।) सम्बन्ध नहीं है। पहले जीव और बाद में अजीव अथवा पहले अजीष और बाद में जीव-ऐसा सम्बन्ध नहीं होता। अण्डा मुगों से पैदा होता है और मुर्गी अण्डे से पैदा होती है। बीज वृक्ष से