Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्व १२0१ परमाणु के स्कन्धरूप में परिणत होकर फिर परमाणु बनने में जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्य काल लगता है । और दयणकादि स्कन्धों के परमाणुरूप में अथवा व्यणुकादि स्कन्धरूप में परिणत होकर फिर मूल रूप में श्राने में जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्त काल लगता है।
एक परमाणु अथवा स्कन्ध जिस आकाश-प्रदेश में थे और किसी कारणवश वहाँ से चल पड़े, फिर उसी श्राकाश-प्रदेश में उत्कृष्टतः अनन्त काल के बाद और जघन्यतः एक समय के बाद ही आ जाते है । परमाणु आकाश के एक प्रदेश में ही रहते हैं। स्कन्ध के लिए यह नियम नहीं है। वे एक, दो संख्यात, असंख्यात प्रदेशों में रह सकते हैं। यावत्-समूचे लोकाकाश तक भी फैल जाते हैं ? समूचे लोक में फैल जाने वाला स्कन्ध 'अचित्त महास्कन्ध' कहलाता है। पुद्गल का अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व
स्कन्ध-द्रव्य की अपेक्षा स्कन्ध सप्रदेशी होते हैं। जिस स्कन्ध में जितने परमाणु होते हैं, वह तत्परिमाणप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है।
क्षेत्र को अपेक्षा स्कन्ध सप्रदेशी भी होते हैं और अप्रदेशी भी। जो एक आकाश-प्रदेशावगाही होता है, वह अप्रदेशी और जो दो आदि आकाशप्रदेशावगाही होता है, वह सप्रदेशी। .
काल की अपेक्षा जो स्कन्ध एक समय की स्थिति वाला होता है, यह अप्रदेशी और जो इससे अधिक स्थिति वाला होता है, वह सप्रदेशी।
भाव की अपेक्षा एक गुण वाला अप्रदेशी और अधिक गुण वाला सप्रदेशी।
परमाणु
द्रव्य की अपेक्षा परमाणु अप्रदेशी होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेशी होते हैं। काल की अपेक्षा एक समय की स्थिति वाला परमाणु अप्रदेशी और अधिक समय की स्थिति वाला सप्रदेशी। भाव की अपेक्षा एक गुण वाला अप्रदेशी और अधिक गुण वाला सप्रदेशी। परिणमन के तीन हेतु
परिणमन की अपेक्षा पुदगल तीन प्रकार के होते हैं:१-वैससिक