Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
View full book text
________________
१०२]
जैन दर्शन के मौलिक तय
frent are afer होता है, वह आदरणीय होता है । कोई व्यक्ति जाति से भले ही चाण्डाल हो, किन्तु यदि वह व्रती है तो उसे देवता भी ब्राह्मण मानते हैं ५५
जाति के गर्व से गर्वित ब्राह्मण चाण्डाल मुनि के तपोबल से अभिभूत हो गए। इस दशा का वर्णन करते हुए भगवान् महावीर ने कहा- यह श्राँखों के सामने है - तपस्या ही प्रधान है। जाति का कोई महत्त्व नहीं है। जिसकी योग विभूति और सामर्थ्य अचम्भे में डालने वाली है, वह हरिकेश मुनि चाण्डाल का पुत्र है ५१ |
जो नीच जन हैं, वे असत्य का श्राचरण करते हैं। इसका फलित यह होता है - जो असत्य का श्राचरण नहीं करते, वे नहीं है ५७।
-
श्रमण का उपासक हर कोई बन सकता है। उसके लिए जाति का बन्धन नहीं है। श्रावक के शिर में मणि जड़ा हुआ नहीं होता । जो अहिंसा सत्य का आचरण करता है वही भावक है, भले फिर वह शूद्र हो या
ब्राह्मण ।