Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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१६४] जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
सासर्य यह है कि स्व अनेक तन्तुओं से बनता है। प्रत्येक तन्तु में अनेक रूपं होते हैं। उनमें भी ऊपर कारूला पहले छिदता है, तब कहीं उसके नीचे का रूमा छिदता है । अनन्त परमाणुओं के मिलन का नाम संघात है। अनन्त संघासों का एक समुदय और अनन्त समुदयों की एक समिति होती है। ऐसी अनन्त समितियों के संगठन से तन्तु के ऊपर का एक स्त्रां बनता है। इन सपका बेदन क्रमशः होता है। सन्तु के पहले रूए के छेदन में जितना समय लगता है, उसका अत्यन्त सूक्ष्म अंश यानी असंख्यातवां भाग ( हिस्सा) समय
अविभाज्य काल
-एक समय असंख्य समय
-एक श्रावलिका २५६ श्रावलिका
--एक क्षुल्लक भव (सब से छोटी आयु ) १२२६ २२२३-श्रावलिका-एक उच्छवास निःश्वास
३७७३
२४५८ ४४४६ -श्रावलिका या
३७७३ साधिक १७ तुल्लक भव या एक श्वासोच्छवास
है-एक प्राण ७प्राण
--एक स्तोक ७स्तोक
-एक लव ३८॥ लव
-एक घड़ी ( २४ मिनट ) ७७ लव
-दो घड़ी । अथवा, -६५५३६ क्षुल्लक भव । या, -१६७७७२१६ श्रावलिका अथवा, -३७७३ प्राण । अथवा,
-एक मुहूर्त (सामायिक काल) ३० मुहूर्त
-एक दिन रात (अहो रात्रि) १५ दिन