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२. मग्नता
मग्नता ! तम्मयता ! समग्रतया लीनता, तल्लीनता ! और उस में भी ज्ञान-मग्नता !
मतलब, ज्ञानार्जन, ज्ञान- चर्चा, ज्ञानप्रबोधन में अपने आपको / स्वयं को पूर्ण रूप से लीन कर देना ।
पूर्णता के शिखर पर पहुँचने का एकमेव साधन / प्रथम सोपान है - ज्ञान
मग्नता ।
आज तक विषयवासना, मोह-लोभ और परिग्रह... ... सब कुछ प्राप्त करने की ललक में सदा-सर्वदा खोये रहे । लेकिन क्या मिला ? अपार अशान्ति, संताप, क्लेश और कलह... साथ में उद्वेग और उदासीनता !
फलत: हमें दुबारा सोचना होगा, चिन्तन व मनन करना होगा कि जिसके काररण परमानन्द का 'पिन पोइंट' प्राप्त हो जाये, अक्षय प्रसन्नता और अपूर्व शान्ति के द्वार खुल जाएँ, दिव्य चितन की पगडंडी मिल जाय और मोक्षभार्ग स्पष्ट रूप से नजर आने लगे । ऐसी मग्नता / तल्लीनता पाने के लिए हमें भगीरथ प्रयत्न करने होंगे। साथ ही इन प्रयत्नों के आधारभूत प्रस्तुत प्रष्टक का बारबार, निरन्तर परिशीलन करना होगा ।
अतः एक बार तो पठन-मनन कर देखें ।
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