Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 18
________________ नमो जिनाय त्रिदशार्चिताय, विनष्ट-दोषाय गुणार्णवाय। विमुक्ति-मार्ग-प्रतिबोधनाय, देवाधि-देवाय नमो जिनाय।।8।। (त्रिदश अर्चिताय) देवों से पूजित (विनष्ट दोषाय) नष्ट हो गए हैं दोष जिनके जो (गुण-अर्णवाय) गुणों के सागर हैं; ऐसे (जिनाय) जिनदेव के लिए (नमः) नमस्कार हो। (विमुकितमार्गप्रतिबोधकाय) जो विशेष रूप से मुक्ति मार्ग के उपदेश को देने वाले हैं, ऐसे (देवाधिदेवाय) देवों के भी देव (जिनाय) जिनदेव के लिए (नमः) नमस्कार हो। I hereby pay obeisance to shree Jinendra dev - who is worshipped by celestial beings, Godes of all the four categories, who has destroyed all the eighteen faults, and who is the God of godes. "Shri Arihant dev" (pure and perfect soul with body). who delivers the special discourse of the path of salvation. देवाधिदेव! परमेश्वर! वीतराग! सर्वज्ञ! तीर्थंकर! सिद्ध! महानुभाव! त्रैलोक्यनाथ! जिन-पुंगव! वर्धमान! स्वामिन! गतोऽस्मि शरणंचरण-द्वयंते।।७।। (देवाधिदेव! परमेश्वर! वीतराग! सर्वज्ञ! तीर्थंकर! सिद्ध! महानुभाव! त्रैलोक्यनाथ! जिनपुंगव! वर्धमान! स्वामिन्!) हे देवाधिदेव! हे परमेश्वर! हे वीतराग! हे सर्वज्ञ! हे तीर्थंकर! हे सिद्ध, हे! महानुभाव! हे त्रैलोक्यनाथ! हे जिन श्रेष्ठ! हे वर्धमान! हे स्वामिन्! मैं (ते) आपके (चरणद्वय) दोनों चरणयुगल की (शरण) शरण को (गतः अस्मि) प्राप्त होता हूँ। ___Oh God of godes, oh supermost lord, oh non-attached, oh omniscient, oh pontiff, (teerthaņkar) oh bodyless pure and perfect soul, oh greatest of great, oh lord of three universes, oh excellent Jina, oh Vardhmān (constantly growing or developing one) and oh lord; I here by take shelter of your lotus feet. जित-मद-हर्ष-द्वेषाजित-मोह-परीषहाः जित-कषायाः। जित-जनम-मरण-रोगाजित-मत्सर्याजयन्तु जिनाः।10।। जिन्होंने (जितमद-हर्ष-द्वेषा) जीता है मद-हर्ष-द्वेष को, (जित-मोह-परीषहा) 16 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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