Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 84
________________ जलधाराशरताडिता, न चलन्ति चरित्रतः सदा नृसिंहाः । संसार दुःख भीरवः, परिषहा - राति - घातिनः प्रवीराः ।। 6 ।। (जलधाराशरताडिता) जो जल की धारा रूपी बाणों से ताड़ित हैं, (संसार - दुख भीखः ) संसार के दुःखों से भयभीत हैं, तथा (परीषह-आराति -घातिनः) परिषह रूपी शत्रुओं का घात करने वाले हैं, ऐसे (प्रवीराः) धैर्यवान आत्मबली (नृसिंहाः) श्रेष्ठ मुनिराज (सदा चरित्रतः न चलन्ति) सदा चरित्र से विचलित नहीं होते । Excellent/top most saints, who are extremely patient, spiritually strong never fall down from the path of right conduct, who are attacked by the arrows of water currents; who are afraid of the pangs of mundane existence and who distrot/crush the enemies of hardships. अविरतबहल तुहिनकण, वारिभिरंघ्रिपपत्र पातनैरनवरतमुक्तसात्काररवैः, परूषैरथानिलैः शोषितगात्रयष्टयः । इह. श्रमणा धृतिकंबलावृताः शिशिरनिशां, तुषार विषमां गमयन्ति, चतुः पथे स्थिताः ।। 7 ।। ( अविरत - बहल - तुहिन - कण - वारिभिः) निरन्तर अत्यधिक हिमकरण मिश्रित जल से सहित है अर्थात्ं जिस काल में ओलों की जलवृष्टि हो रही है, (अङ्घ्रिपपत्रपातनैः) जिनसे वृक्षों के पत्ते गिर रहे हैं और ( अनवरत - मुक्त - सात्काररवैः) उससे निरन्तर “सायं-सायं” ऐसा बड़ा भारी शब्द होता रहता है ( अथ) तथा ( परूषैः अनिलैः) कठोर वायु के द्वारा (शोषित - गात्र- यष्टयः) सूख गयी है ( शरीर यष्टि) दुर्बल है शरीर जिनका; ऐसे (श्रमणाः) निर्ग्रन्थ महासाधु ( इह ) इस लोक में (धृति - कम्बलावृताः) धैर्य रूपी कम्बल से ढके हुए, (तुषार-विषमा) हिमपात से विषम (शिशिर - निशा ) शीतकाल की रात्रि को (चतुः पथे) चौराहे में (स्थिताः) स्थित हो ( गमयन्ति ) व्यतीत करते हैं । What do saints in winter season? Great unknotted saints, whose bodies have been dried up due to attacks by sharp winds - pass the nights of winter season by sitting on road crossings-at times of hail storm resulting in fall of tree leaves and owful noises/sounds; such saints keep themselves covered by the blankets of patience in ice cold nights of winter. 82 + Gems of Jaina Wisdom-IX

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