Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 125
________________ निर्वाण भक्ति (Eulogy of Salvation) विबुधपति - खगपतिनरपतिधनदोरगभूतयक्ष पतिमहितम् । अतुलसुखविमलनिरुपमशिवमचमनामयं हि संप्राप्तम् ।। 1।। कल्याणैः - संस्तोष्ये पन्चभिरनघं त्रिलोक परमगुरुम् । भव्यजनतुष्टिजननैर्दुरवापैः सन्मतिं भक्तया ।। 2 ।। जो (विबुधपति - खगपति - नरपति - धनद- उरग - भूत-यक्षपति-भदिनम् ) देवेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती, कुबेर, धरणेन्द्र, भूत व यक्षों के स्वामियों से पूजे जाते हैं; (अचलम ) अविनाशी ( अनामयं) निरोगता (अतुल सुख) अतुल्य सुख रूप (विमल - निरुपमशिवम् ) निर्मल, उपमातीत, जो मोक्ष है, उसको (सम्प्राप्तम्) सम्यक् प्रकार से प्राप्त हैं; (अनद्य) जो निर्दोष हैं; (त्रिलोक परमगुरुम् ) तीन लोकों के श्रेष्ठ गुरू हैं; ऐसे (सन्मतिं नत्वा) भगवान महावीर स्वामी को नमस्कार करके (भव्यजन - तुष्टि - जननैः) भव्य-जनों को सन्तोष उत्पन्न करने वाले (दुरवापैः ) अत्यन्त दुर्लभ (पंचभिः कल्याणैः) गर्भादि पांच कल्याणकों के द्वारा (संस्तोष्यं) उन वीर प्रभु की अच्छी तरह से स्तुति करूँगा । After paying respectful obeisance to lord Mahavira, who is worshiped by lords of celestial beings, Vidhyadharaj, wheel wielding emperors, god of wealth (Kuber), lord of serpents, ghosts and yakshas; who has attained salvation which is indestructible, completely desease free, having incomparable bliss, faultless and incomparable, who is flaw-less, who is the excellent teacher of all the three universes; who gives full satisfaction to all the bhavyas (souls capable to attain salvation) and who is extremely rare - I self venerate/worship him by way of performing five holy ceremonies (kalyānakas) there of. आषाढसुसितषष्ठ्यां हस्तोत्तरमध्यमाश्रितेशशिनि । आयातः स्वर्गसुखं भुक्त्वापुष्पोत्तराधीशः ।। 3 ।। सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे । देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदर्श्य विभुः ।। 4 ।। (पुष्पोत्तर - अधीशः) पुष्पोत्तर विमान का स्वामी (विभुः) भगवान Gems of Jaina Wisdom-IX + 123

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