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destruction of four fatal karmas-plenty and prosperity in the area of four hundred yojanas in each of four directions, movements in space; killing and injuring to none/no living being, non-existing of feeding in morcels, absence of harrassments, appearence of four faces - one in each direction, comprahensive knowledge of all sciences/systems of learning, body casting no shadow, eyes not twinckling and no growth of nales and hair.
सार्वार्ध-मागधीया, भाषा मैत्री च सर्व-जनता-विषया। सर्वर्तु-फल-स्तबक-प्रवाल-कुसुमोपशोभित-तरु-परिणामाः।। 42|| आदर्शतल-प्रतिमा, रत्नमयी जायते मही च मनोज्ञा। विहरण-मनवेत्यनिलः, परमानन्दश्च भवति सर्व-जनस्य ।। 43।।
(सार्वार्धमागधीया भाषा) समस्त प्राणियों का हित करने वाली अर्धमागधी भाषा, (सर्वजनताविषया मैत्री च) समस्त जन समूह में मैत्री भाव, (सर्व ऋतु फल-स्तबक प्रवाल कुसुमोपशोभित-तरु-परिणामा) छहों ऋतुओं के फलों के गुच्छे, पत्ते और फूलों से सुशोभित वृक्षों से युक्त होना, (च मही रत्नमयी मनोज्ञा आदर्श तल प्रतिमा जायते) और पृथ्वी का रत्नमयी, सुन्दर दर्पण के समान निर्मल होना, (अनिलः विहरणम् अन्वेति) वायु का विहार के अनुकूल चलना (च सर्वजनस्य परम्-आनन्दः भवति) और समस्त जीवों का परम आनन्दित होना।
Fourteen miracles made by gods - (celestial beings) Ardhamāgadhi language beneficial/good to all living beings, friendly relations in amongst all human beings, trees and plant getting the bunches of fruits of all six seasons as well as flowers and leaves concerned, Earthen land becoming transparently clean as clean as mirror, as good looking as jewels, air blowing/moving favourable to bihāra and all mundane souls becoming joyful.;
मरुतोऽपि सुरभि-गन्ध-व्यामिश्रा योजनानतरं भूभागम्। व्युपशमित-धूलि-कण्टक-तृण-कटीक-शर्करोपलं प्रकुर्वन्ति ।। 44।। तदनु स्तनितकुमारा, विद्युन्माला-विलास-हास-विभूषाः। . प्रकिरन्ति सुरमि-गन्धिं, गन्धोदक-दृष्टि-माज्ञया त्रिदशपतेः ।। 45।।
Gems of Jaina Wisdom-IX
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