Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 172
________________ Nature of shri Arihanta deva. May the supreme being shri Arihanta deva - who has destroyed/completely annihilated the crooked fatal karmas, who has got thirtyfour special miracles; who is associated with five kalyānakas - ceremonies of conception, birth etc. and who is adorned with eight excellent splendours - bless me. इच्छामि भंते! गंदीसरभत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं। णंदीसरदीवम्मि, चउदिस विदिसासु अंजण-दधिमुह-रदिकर-पुरुणगवरेसु जाणि जिणचेइयाणि ताणि सव्वाणि तिसुवि लोएसु भवणवासियावाणविंतर-जोइसिय-कप्पवासिय-त्ति चउविहा देवा सपरिवारा दिव्वेहिं ण्हाणेहिं, दिव्वेहिं गंधेहिं, दिव्वेहिं अक्खेहि, दिव्वेहिं पुप्फेहिं, दिव्वेहिं चुण्णेहिं, दिव्वेहिं दीदेहि, दिव्वेहिं धूवेहि, दिव्वेहिं वासेहिं, आसाढ़कात्तियफागुण-मासाणं अट्ठमिमाई, काऊण जाव पुण्णिमंति णिच्चकालं अच्चंति, पुज्जंति, बंदंति, णमंसंति। णंदीसरमहाकल्लाणपुज्ज करंति अहमवि इह संतो तत्थासंताइयं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो सुगइ-गमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं। (भंते!) हे भगवान! (णंदीसरभत्ति काउस्सग्गो कओ) मैंने नन्दीश्वर भक्ति का कायोत्सर्ग किया।(तस्स आलोचेउं इच्छामि) तत्सम्बन्धी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। (णंदीसरदीवाम्मि) नन्दीश्वन द्वीप में (चउदिस विदिसास) चारों दिशाओं, विदिशाओं में (अंजण-दधिमुह-रदिकर-पुरुणगवरेस) अंचनगिरी, दधिमुख व रतिकर नामक श्रेष्ठ पर्वतों में (जाणि जिणचेइयाणि) जितनी जिन प्रतिमाएं हैं; (ताणि सव्वाणि) उन सबको (तिसुवि लोएसु) त्रिलोकवर्ती (भवणवासिय-वाणविंतर-जोइसिय-कप्पवासिय-त्ति चउविहा देवा सपरिवारा) भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी ये चार प्रकार के देव परिवार सहित (दिव्वेहिं ण्हाणेहिं, दिव्वेहिं गंधेहिं, दिव्वेहिं अक्खेहिं, दिव्वेहिं पुप्फेहिं, दिव्येहिं चुण्णेहिं, दिव्वेहिं दीवहिं, दिव्वेहिं धूवेहिं, दिव्वेहिं, वासेहिं) दिव्य सुगन्धित जल, दिव्य गंध, दिव्य अक्षत, दिव्य पुष्प, दिव्य नैवेद्य, दिव्य दीप, दिव्य धूप और दिव्य फलों से (आसाढ़-कत्तिय-फागुण-मासाणं अट्ठमिमाइं काऊण जाव पुण्णिमुंति) आषाढ़, कार्तिक व फागुन मास की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा पर्यन्त (णिच्चकालं अच्चंति, पुज्जति, वंदंति, णमस्संतिणंदीसर-महाकल्लाण-पुज्ज 170 Gems of Jaina Wisdom-IX

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