Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

Previous | Next

Page 170
________________ three white umbrellas, clean transparent mirror and multitude of sixtyfour whiskers. स्तंभ-प्रतोलि-निधि-मार्ग-तडाग-वापी क्रीडाद्रि-धूप-घट-तोरण-नाट्य-शालाः। स्तूताश्च चैत्य-तरवो विलसन्ति यस्य, तस्मै नम-स्त्रिभुवन-प्रभवे जिनाय ।। 8 ।। (यस्य) जिनकी समवशरण सभा में (स्तंभ-प्रतोलि-निधि-मार्ग-तडागवापी-क्रीडादि-धूपघट-तोरण-नाट्यशाला स्तूपाः च चैत्यतरवः) मानस्तंभ, गोपुर, नवनिधि, मार्ग/रास्ते, तालाब, वापिका, क्रीड़ा-पर्वत, धूप-घट, तोरण, नाट्य-शालाएँ और अनेक प्रकार के स्तूप तथा चैत्यवृक्ष (विलसंति) शोभा को प्राप्त हो रहे हैं; (तस्मै) उन (त्रिभुवन-प्रभवे) तीन लोक के स्वामी (जिनाय) जिनेन्द्र देव के लिये (नमः) नमस्कार हो। Other auspicious materials/objects in samavasarana - I pay obeisance to the lord of three universes shri Jinendra deva, whose samavasarana pavilian contains - beautiful pillars of pride (manstambhas), gopuras, nine treasures, paths, water reservoirs, step wells, mountains for sports, pots of insences, arches, theatorical halls, various kinds of stupas and chaitya trees. सेनापति स्थपति-हर्म्यपति-द्विपाश्व, स्त्री-चक्र-चर्म-मणि-काकिणिका-पुरोधाः। छत्रासि-दंडपतयः प्रणमन्ति यस्य, तस्मै नम-स्त्रिभुवन-प्रभवे जिनाय ।। 9।। (सेनापति-स्थपति-हर्म्यपति-द्विप-अश्व-स्त्री-चक्र-चर्म-मणिकाकिणिका-पुरोधा-छत्र-असि-दंड-पतयः) सेनापति, स्थपति/उत्तम कारीगर, हर्म्य पति/घर का सभी हिसाब आदि रखने वाला, हाथी, घोड़ा, स्त्री रत्न/चक्रवर्ती की पटरानी, सुदर्शन-चक्र, चर्म रत्न, चूड़ामणि रत्न, काकिणी रत्न, पुरोहित रत्न, छत्र, तलवार और दंड इन १४ रत्नों के स्वामी चक्रवर्ती भी (यस्य प्रणमन्ति) जिनको नमस्कार करते हैं; (तस्मै) उन (त्रिभुवनप्रभवे) तीन लोक के स्वामी (जिनाय) जिनदेव के लिये (नमः) नमस्कार हो। 168 • Gems of Jaina Wisdom-IX

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180