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आकस्मिक-मिव युगपद- - दिवसकर - सहस्र - मपगत - व्यवधानम् । भामण्डल - मविभावित- रात्रिदिव - भेद - मतितरामाभाति ।। 55 ||
(अपगतव्यवधानं) आवरण रहित (आकस्मिक) सहसा / अकस्मात् ( युगपत् ) एकसाथ उदित हुए ( दिवसकर - सहस्रम् इव) हजारों सूर्यों के समान (अविभावित- रात्रिं-दिवभेदं) रात-दिन के भेद को विलुप्त / अस्त करने वाला (भामण्डलं अतितराम् आभाति) भामण्डल अत्यधिक शोभा को प्राप्त होता है ।
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प्रबल-पवनाभिघात-प्रक्षुभित - समुद्र घोष- मन्द्र-ध्वानम् । दन्ध्वन्यते सुवीणा - वंशादि - सुवाद्य - दुन्दुभिस्तालसमम् ।। 56 ।।
(प्रबल - पवन-अभिघात - प्रक्षुभित - समुद्र - घोष - मन्द - ध्वानम् ) कठोर वायु के आघात से क्षुभित समुद्र के शब्द के समान गम्भीर स्वर वाली (सुवीणा-वंशादि- सुवाद्य दुन्दुभिः) प्रशस्त वीणा और बाँसुरी आदि उत्तम वाद्यों से सहित दुन्दुभि (ताल समं) ताल के अनुसार (दंध्वन्यते) बार-बार गम्भीर शब्द करती है ।
Dundubhi (a musical instrument):- The musical instrument named 'Dundubhi' accompanied by fine 'Vina', flute etc. creats deep melodious sound in tune with the rhythem thereof. This sound is produced by the jerks of hard air and is like the roarings of oceanic waves.
त्रिभुवन - पतिता - लाञ्छन - मिन्दुत्रय - तुल्य-मतुल- मुक्ता - जालम् । छत्रत्रयं च सुबृहद् - वैडूर्य- विक्लृप्त- दण्ड-मधिक- मनोज्ञम् ।। 57 ।।
(त्रिभुवन - पतितालाञ्छनं) तीनों लोकों के चिन्हरूप ( इन्द्रत्रयतुल्य) तीन चन्द्रमाओं के समान ( अतुल मुक्ताजालम् ) अनुपम मोतियों के जाल से सहित ( सुबृहद् - वैडूर्य - विक्लृप्त दण्ड ) बहुत विशाल नीलमणि निर्मित दण्ड से युक्त तथा ( अधिक मनोज्ञं) अत्यन्त सुन्दर (छत्रत्रयं) तीन छत्र शोभायमान होते हैं ।
Three Umbrellas:- Three umbrellas which are the symbols
1624 Gems of Jaina Wisdom-IX