Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 167
________________ ( यदीये) जिनके समवशरण में (सालः) कोट पश्चात् (वेदिः) वेदी, (अथ) वेदी पश्चात् (वेदिरतः अपि शालः) पुनः वेदी और फिर शाल / कोट (च) और (वेदिः ) वेदी, (शाल) कोट (इह ) इस प्रकार (वेदिरथो अपि शालः) पुनः वेदी फिर शाल (च) और (वेदिः ) वेदी (क्रमतः) क्रम से (भाति सदसि सभा में शोभायान हैं; (तस्मै) उन ( त्रिभुवन प्रभवे) तीन लोक के नाथ (जिनाय) जिनदेव के लिये (नमः) नमस्कार हो । Creations of the samavasarava pavilion:- I respectfuly pay obeisance to the Jina-whose charming samavasarana/ pavilion has got a compound wall (dhooli shalakota) at the low level. Thereupon are two alters one upon the other. Thereupon is a compound wall (golden). There after is an alter. Thereupon comes the third compound wall (of silver). There after is an alter. Thereupon is fourth compound wall of quartz having again an alter. प्रासाद-चैत्य-निलयाःपरिखात - वल्ली, प्रोद्यानकेतुसुरवृक्षगृहाड् गणाश्च । पीठत्रयं सदसि यस्य सदा विभाति, तस्मै नम - स्त्रिभुवन, प्रभवे जिनाय || 3 || (प्रासाद) महल, (चैत्यनिलयां) चैत्यालय, (परिखा) खातिका, (अथ) पश्चात् (वल्लि) लता, (प्रोद्यान) उद्यान, (केतु) ध्वजा, (सुरवृक्ष) कल्पवृक्ष, (च) और (गृहाड्गणाः) गृहसमूह (पीठत्रयं) तीन पीठ (यस्य) जिनकी (सदसि ) सभा में (सदा) हमेशाः (विभाति) शोभायमान हैं; (तस्मै) उन ( त्रिभुवन प्रभवे ) तीन भुवन के स्वामी (जिनाय ) जिनेन्द्र देव के लिये (नमः) नमस्कार हैं । I respectfuly bow down and salute the Jina-lord of all the three universes; whose samavasarana pavilion is ever adorned with land of palaces and temple/chaityalaya of Jina, (chaityaprasada bhumi) land of trenches, land of creepers, garden land, land of flags, land of celestial trees, (kalpa braksa); land of edifices (grahabhumi), and three pedestal. भाषा - प्रभा- वलयविष्टर- पुष्पवृष्टिः, पिण्डिद्रुमस्त्रिदशदुन्दुभि - चामराणि । छत्रत्रयेण सहितानि सन्ति यस्य, तस्मै नम - स्त्रिभुवन - प्रभवे जिनाय || 4 || Gems of Jaina Wisdom-IX◆ 165

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