Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

Previous | Next

Page 162
________________ soon in accordance with the instructions of the lords of celestial beings (Indras). स्फुर-दरसहस्र-रुचिरं, विमल-महारत्न-किरण-निकर-परीतम्। प्रहसित-किरण-सहस्र-द्युति-मण्डल-मग्रगामि-धर्म-सुचक्रम्।। 5011 (स्फुरत्-अर-सहन-रुचिर) दैदीप्यमान एक हजार आरों से शोभायमान, (विमल-महारत्न-किरण-निकर-परीतम्) निर्मल महारत्नों के किरण समूह से व्याप्त और (प्रहसित-सहन-किरण-द्युति-मण्डलम्) सहन रश्मि सूर्य की कान्ति को तिरस्कृत करता हुआ (धर्म-सुचक्रम्) उत्तम धर्म-चक्र (अग्रगामि) आगे-आगे चलता है। ___ The supreme wheel of religion (Dharmachakra)- having lusterous one thousand spokes occupied by the aggrigates of rays of flawless by magnificent jewels and low rating the glamour of the sun having one thousand rays moves on before the Tirthankara in course of his 'bihāra'. इत्यष्ट-मंगलं च, स्वादर्श-प्रभृति-भक्ति-राग-परीतैः । उपकल्प्यन्ते त्रिदशै-रेतेऽपि-निरुपमातिशयाः ।। 51 ।। विहार काल में (इति) इसी प्रकार (स्वादर्शप्रभृति अष्टमंगलं च) दर्पण आदि को ले आठ मंगल द्रव्य भी साथ में रहते हैं। (एते अपि) ये आठ मंगल द्रव्य भी आगे-आगे रहते हैं। (निरुपम अतिशयाः) उपमातीत विशेष अतिशय भी (भक्त्रािग परीतैः) भक्ति के राग में रंगे हुए (त्रिदशैः) देवों के द्वारा (उपकल्प्यन्ते) किये जाते हैं। __Similarly in times of the 'bihāra' of Tirthankar, eight auspicious objects such as mirror etc. also go on before Tirthaņkar, besides many incomparable miracles are created by gods full of devotion at that time. वैडूर्य-रुचिर-विटप-प्रवाल-मृदु-पल्लवोपशोभित-शाखः। श्रीमानशोक-वृक्षों वर-मरकत-पत्र-गहन-बहलच्छायः।। 5211 (वैडूर्य-रुचिर-विटप-प्रवाल-मृदुपल्लव-उपशोभित शाखः) सुन्दर वैडूर्यमणियों से बनी शाखाओं, पत्तों और कोमल कोपलों से शोभित उपशाखाओं से सहित और (वरमरकतपत्रगहन-बहल-च्छायः) श्रेष्ठ हरित 160 Gems of Jaina Wisdom-IX

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180