Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 160
________________ (सुरभिगन्ध व्यामिश्रा मरुतःअपि) सुगंधित वायु भी (योजनानतरं भूभाग) एक योजन केअन्तर्गत पृथ्वी के भागको (व्युपशमित-धूलि-कण्टक-तृणकीटक-शर्करा-उपल) धूलि, कण्टक, तृण, कीट, रेत, पाषाण रहित (प्रकुर्वन्ति) करते हैं; (तदनु) उसके बाद (त्रिदशपतेः) इन्द्र की (आज्ञया) आज्ञा से (विद्युत-माला-विलास-हास-विभूषाः) बिजलियों के समूह की चमक रूपी हास्य-विनोद रूप वेषभूषा से युक्त (स्तनित कुमाराः) स्तनित कुमार जाति के देव अर्थात् बादलों की गर्जना ही जिनके आभूषण हैं; ऐसे स्तनित कुमार जाति के देव मेघ का रूप धारणकर (सुरभिगन्धि) मनोहर गन्ध से युक्त (गन्धोदक वृष्टि) सुगन्धित जल की वर्षा (प्रकिरन्ति) करते हैं। Fragrant air making the land-within a radious of one yojana-free from dust, thorns, grass blades, insects, sand and stones. Raining of fragrant waters caused by the gods of the Stanita class converting themselves into the form of clouds and wearing the dress of entertainments resulting from the movements of lightening as per orders of Indras/lords of celestial beings. वर-पद्यराग-केसर-मतुल-सुख-स्पर्श-हेम-मय-दल-निचयम्। पादन्यासे पद्यं सप्त, पुरः पृष्ठतश्च सप्त भवति।। 46।। विहार के समय (पादन्यासे) चरण रखने के स्थान में (वरपद्यराग केसर) उत्कृष्ट पद्यराग मणि जिसमें केशर है; (अतुलसुख-स्पर्श-हेममयदलनिचयं) जिनका स्पर्श अत्यन्त सुखकर है; सुवर्णमय पत्तों के समूह युक्त (पद्य) एक कमल रहता है तथा ऐसे ही (सप्तपुरः) सात कमल आगे (च) और (सप्तपृष्ठतः) सात कमल पीछे (भवन्ति) होते हैं। Creation of fifteen celestial lotuses by gods in course of the movement (bihara) of Tirthankar - one fine lotus having the polen of the gems (Padma-rāga), (whose touch is accessively pleasing and which is accompanied by golden leaves) alongwith seven similar totuses in front and seven similar lotuses on the back there of. फलभार-नम्र-शालि-ब्रीह्यदि-समस्त-सस्य-धृत-रोमाञचा। परिहषितेव च भूमि-स्त्रिभुवननाथस्य वैभवं पश्यन्ती।। 47 ।। 158 Gems of Jaina Wisdom-IX

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