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अप्रमित-वीर्यता च, प्रिय-हित वादित्व-मन्यदमित-गुणस्य। प्रथिता दश-विख्यात, स्वतिशय-धर्मा स्वयं -भुवो देहस्य ।। 39 ।।
(नित्यं निः स्वेदत्व) कभी पसीना न आना, (निर्मलता) कभी मल-मूत्र नहीं होना, (च चीरगौररूधिरत्वं) दूध के समान सफेद खून संहनन का होना, (सौरूप्य) सुन्दर रूप का होना, (अप्रमितवीर्यता च) और अतुल्य बल, (प्रियहितवादित्वं) प्रिय व हितकारी मधुर वचनों को बोलना (दस विख्याता स्वतिश धर्माः) ये १० प्रसिद्ध अतिशय व (अन्यनत् आमित गुणस्य) अन्य अपरिमित, अनन्त गुण (स्वयंभुवः देहस्य) तीर्थंकर के शरीर में (प्रथिता) कहे गये हैं।
Ten miracles of the bodies of Arihantas - Never to sweat, freedom from excreta, having blood as white as milk, body being well praportionate, osseous structure of thunder bolt - bull, fascinating form, having fragrant body, being adorned with excellent characterstics, incomparable strength and sweet benefactory speech. These ten miracles exist in the bodies of Arihantas alongwith other unlimited attributes.
गव्यूति-शत-चतुष्टय-सुभिक्षता-गगन-गमन-मप्राणिवधः । भुक्तयुपसर्गाभाव-श्चरास्यत्वं व सर्व-विद्येश्वरता।। 40।। अच्छायत्व-मपक्ष्म-स्पन्दश्च सम-प्रसिद्ध-नख-केशत्वम्। स्वतिशय-गुणा भगवतो, घाति-क्षयजा भवन्ति तेऽपिदशैव ।। 41 ||
(गव्यूति-शत-चतुष्टय-सुभिक्षता) चार सौ कोश तक सुरभि का होना, (गगन गमनम्) आकाश में गमन होना, (अप्राणिवधः) किसी जीव का वध न होना/हिंसा का अभाव, (भुक्ति-उपसर्ग अभावः) कवलाहार का नहीं होना, उपसर्ग का नहीं होना, (चतुः आस्यत्व) चार मुख दिखना, (सर्व-विद्या-ईश्वरता) सब विद्याओं का स्वामी होना, (अच्छायत्वम्) छाया का नहीं पड़ना, (अपक्ष्म-स्पन्दः) नेत्रों के पलक नहीं झपकना, (समप्रसिद्ध-नख-केशत्वं) नख और केशों का नहीं बढ़ना, (घातिक्षयजा) घातिया कर्मों के क्षय से होने वाले (स्वतिशय गुणा भगवतः) भगवान् के ये स्वाभाविक गुण उत्तम अतिशय हैं। (ते अति दश एव) वे भी दस ही होते हैं।
Ten miracles of Omniscience - omniscience, which gets manifested in Arihants as a result of the elimination/
156 • Gems of Jaina Wisdom-IX