Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 157
________________ well versed in all the philosophies, saints (munis), low lying places of land at the bottoms of mountains, holes, caves, rivers, dence forests, branches of trees, osseous and the flames of fire. All these holy places are much devotionaly adored and worshipped by lords of celestial beings. तेजिनपतयस्तत-प्रतिमा-स्तदालयास्तत्रिषधका स्थानानि। ते ताश्च ते च तानि च, भवन्तु भव-घात-हेतवो भव्यानाम् ।। 36 ।। (जिनपतयः) जिनेन्द्र देव, (तत्प्रतिमाः) जिन प्रतिमाएं, (तत् आलयाः) उनके मन्दिर और (तत् निषधका-स्थानानि) उनके निर्वाण स्थान हैं। (ते ताः च तानि च) वे जिनेन्द्र देव, उनकी प्रतिमाएं, जिन-मन्दिर और उनके निर्वाणस्थल (भव्यानाम्) भव्य जीवों के (भवघातहेतवः) संसार क्षय के कारण होवें। May shri Jinendra deva, idols of Jina, temples of Jinas, places of salvation cause the end of mundane existence of all bhavyas (souls) capable to attain salvation. सन्ध्यासु विसृषु नित्यं, पठेद्यदि स्तोत्र-मेतदुत्तम-यशसाम्। सर्वज्ञानां सार्व, लघु लभते श्रुतधरेडितं पद-ममितम् ।। 37 ।। (यः) जो (उत्तम यशसाम्) उत्कृष्ट यश के पुंज, (सर्वज्ञानां) सर्वज्ञ देवों के (एतत् सार्वं स्त्रोतं) इस सर्व हितंकर स्त्रोत को (यदि) यदि (नित्यं तिसृषु सन्ध्यासु) प्रतिदिन तीनों सन्ध्याओं में (पठेत) पढ़ता है; वह (लघु) शीघ्र ही (श्रुतधर-अडितं) श्रुत के धारक शास्त्रज्ञ गणधरादि मुनियों के द्वारा पूज्यता, स्तुति को प्राप्त होकर (अमितम् पदम्) शाश्वत अनन्त स्थान मोक्ष को (लभते) प्राप्त होता है। Fruit (consiquence) of reciting Naņdiswara bhakti three times a day - He, who recite this most beneficial eulogy of most reputed or famous omniscient lords regularly three times a day, soon attains eternal bliss of salvation and there by becomes adorable and worshipable by knowers of scriptures i.e. ganadharas and other monks. नित्यं निः स्वदेत्तवं, निर्मलता क्षीर-गौर-रुधिरत्वं च। स्वाद्याकृति-संहनने, सौरूप्यं सौरमं च सौलक्ष्यम् ।। 38 || Gems of Jaina Wisdom-IX 155

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