Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 156
________________ सम्मदकरिवन-परिवृत-सम्मेदगिरीन्द्रमस्तके विस्तीर्ण। शेषा ये तीर्थकरों: कीर्तिभृतः प्रार्थितार्थसिद्धिमवापन् ।। 33 ।। (कीर्तिभृतः) कीर्ति को धारण करने वाले (शेषाः ये तीर्थंकराः) शेष जो बीस तीर्थंकर हैं; वे (विस्ताणे) विशाल फैले हुए (सम्मद-करि वन परिवृत-सम्मेद-गिरीन्द्र मस्तके) मदोन्मत हाथियों से युक्त वन से घिरे हुए सम्मेद गिरिराज के शिखर पर (प्रार्थितार्थ-सिद्धि) अभिलषित मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि को (अवापन्) प्राप्त हुए। .. Eulogy of the rest twenty Tirthankaras. The rest highly reputed twenty Tirthaņkaras altained utmost desirable salvation on the summits of a huge extensive and holy mountain of Sammeda giri, which is surrounded by dence forest full of great intoxicated elephants. शेषाणां केवलिना-मशेषमतवेदिगणमृतां साधूनां। गिरितलविवरदरीसरि-दुरुवनतरु-विटपिजलधि-दहनशिखासु।। 4।। मोक्षगतिहेतु-भूत-स्थानानि सुरेन्द्ररुन्द्र-भक्तिनुतानि। मंगलभूतान्येता-न्यंगीकृत-धर्मकर्मणामस्माकम्।। 35।। (शेषाणाम् केवलिनाम्) तीर्थंकर केवलियों के सिवाय अन्य सामान्य केवली आदि (अशेषमतवेदि-गणभृताम्) सम्पूर्ण मतों के ज्ञाता, गणधरों, (साधूनाम्) व मुनियों के (गिरितल/विवर-दरीसरि-दुरुवन-तरुविवरविटपि-दहन-शिखासु) जो पर्वतों के तल/उपरितन प्रदेश, अधस्तन प्रदेश, बिल, गुफा, नदी, विशाल वन, वृक्षों की शाखा, समुद्र तथा अग्नि की ज्वालाओं में (सुरेन्द्र रुद्र-भक्ति-नुतानि) इन्द्रों के द्वारा अत्यधिक भक्ति से स्तुति, नमस्कार को प्राप्त (मोक्षगति-हेतीभूत-स्थानानि) मोक्षगति के कारणभूत स्थान हैं; (एतानि) ये सब (अंगीकृत-धर्मकर्मणां अस्माकम्) धर्म-कर्म को स्वीकृत करने वाले हमारे (मंगलभूतानि) मंगल स्वरूप हैं। The auspicious prayer of other places of salvation- All the concicrated holy places of salvation, which ascetic uphold and performed the great religious observances are highly auspicious and praise worthy. Such holy places causing salvation include those of salvation of all pure and perfect souls with bodies (Arihantas), other than Tirthankaras, of omniscient souls other than those of Arihantas, of Ganadharas 154. Gems of Jaina Wisdom-IX

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